मंगलवार, 2 अगस्त 2011

जिसकी लाठी उसकी भैंस

यही तो बात है कि जब तक किसी ने अपने सुर में सुर मिलाया, तब तक उससे अच्छा दुनिया में और कोई नहीं लगता, बस जैसे ही उसके सुर आपके सुरों से अलग हुए, तन बदन में आग लग जाती है। फिर अपना आपा खो बैठते है, अनाप- शनाप जो मुंह में आया बक देते है, फिर तो अपनी जिंदगी का एक ही लक्ष्य होता है कैसे इसको चुप कराया जाए। फिर जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत ऐसे ही थोडे बुर्जुगों ने बनाई होगी। जब लाठी हमारे पास है तो भैंस को कोई दूसरा कैसे अपना कह सकता है। गांधी जी में दम था तभी तो उन्होंने अंग्रेजों से भैंस रूपी देश को छीन लिया था, पर उसको कौन अपने खूंटे में बांधेगा, इस बात को लेकर नेहरू और जिन्ना में पंगा भी हुआ था। नेहरू चाहते थे वह मलाई खाएंगे, पर जिन्ना भी कम नहीं थे, लेकिन अब गांधी जी तो ठहरे अहिंसावादी, वह सब कुछ कर सकते थे, पर हिंसा नहीं। बेचारे गांधी जी को क्या पता था कि जिस भैंस को उन्होंने अंग्रेजों से मुक्त करवाया है उसको लेकर आपस में इतनी बड़ी जंग छिड जाएगी। थोडी ना-नुकूर के बाद उन्होंने भी जिन्ना को भी मलाई खाने लायक हिस्सा दे ही दिया। बस यही एक छोटी सी भूल सदियों की सजा बन गई। आज भारत हो या पाक दोनों ही संकट के दौर से गुजर रहे है। पाक आतंकी घटनाओं को लेकर विश्व समुदाय में निशाना बना हुआ है, तो भारत भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को लेकर। दुर्भाग्य की बात है कि वर्षो से मलाई खाने वालों से जैसे ही इस देश की जनता ने हिसाब मांगा, वो आग-बबूला हो गए। बात अन्ना हजारे या बाबा रामदेव की नहीं है, वह तो केवल इस जनता की आवाज भर है। यहां पर पूरी तरह से जनता ही दोषी है, क्योंकि उसने आज तक इस बारे में कभी हिसाब नहीं मांगा। मांगती भी कैसे उसको मालूम ही नहीं था। पर जैसे-जैसे समझ बढ़ती गई, वैसे मलाई खाने वालों की करतूतें समझ आने लगी, पर क्योंकि लाठी रूपी सरकार नेहरू जी के वारिसों के पास ही है तो भैंस भी उनकी ही होगी। इस बात को उन्होंने साबित भी कर दिया। गांधी जी के बताए रास्ते पर चलते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन करने वाले अन्ना हजारे से कोई परहेज नहीं है, पर जब बाबा रामदेव ने सत्याग्रह शुरू किया तो रात के अंधेरे में पूरी दुनिया को दिखा दिया कि लाठी में कितनी ताकत होती है। मेरी नजर में अन्ना हजारे हो या बाबा रामदेव दोनों में से कोई भी दोषी नहीं है, क्योंकि इन दोनों ने जिस आंदोलन की शुरूआत की है, उसकी सफलता से इनको किसी भी तरह का व्यक्तिगत लाभ नहीं होने वाला है। हां अगर लाभ की बात आती है तो वह होगा आने वाली पीढ़ी को। यह लडाई बहुत लंबे समय तक चलने वाली है, क्योंकि जब नस-नस बीमार हो चुकी हो, तो इलाज भी लंबा ही चलेगा। जहां तक बात है व्यक्तिगत लाभ की तो आज अन्ना हो या बाबा दोनों ही उस स्थिति में पहुंच चुके है, जहां पर वह आराम से अपना शेष जीवन व्यतीत कर सकते है। इन दिनों कुछ सवाल बहुत तेजी से आ रहे है, जब तक बाबा रामदेव ने आंदोलन शुरू नहीं किया था तब तक वह बहुत ही अच्छे नागरिक थे, दुनिया में भारत का गौरव थे। पर जैसे ही उन्होंने सरकार से इस बात का हिसाब मांगा कि बताइए कितने की मलाई खाई है, उसका हिसाब चाहिए, तो वह सरकार के नंबर वन दुश्मन हो गए, उनका दाहिना हाथ बालकिशन विदेशी मूल का निकल गया। यह तो सबसे अच्छी बात है कि जब तक अपने पक्ष में बातचीत हो तो अच्छा, नहीं तो लाठी का इस्तेमाल करते हुए उसको दुश्मन नंबर वन घोषित कर दो। लेकिन कांग्रेस यह भूल रही है, इस देश की जनता अब जाग चुकी है, इस देश का मीडिया सुधर चुका है, वह जानता है कि आखिर जनता चाहती क्या है, क्योंकि मीडिया समाज का आइना होता है, जब आइना साफ हो तो समाज की धुंधली तस्वीरें भी बहुत साफ नजर आती हैं। यहां पर कांग्रेस यह सकती है कि उसने आजादी के बाद से लेकर आज तक देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दुनिया के सामने भारत को मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा किया हैं। लेकिन कौन होगा जो उनको याद दिलाए कि बाकी की छोडि ए संसद पर हमला हो या मुंबई में ताज पर हमले के दोषियों को आज तक क्यों मेहमान बना कर रखा हुआ है। क्या वह अन्ना हजारे या बाबा से ज्यादा प्यारे है। अगर देश का समुचित विकास कांग्रेस ने ही किया है तो आज बेरोजगारी क्यों अपने चरम पर पहुंच गई, महंगाई दिनो-दिन क्यों बढती जा रही है। हिंसात्मक घटनाओं में तेजी आती जा रही है। किसी भी जनहित की योजना या विश्व स्तरीय आयोजन में भ्रष्टाचार की बू क्यों जाती है। जब सारे अच्छे कामों का श्रेय कांग्रेस लेना जानती है तो इन बातों का जवाब देना भी कांग्रेस की जिम्मेदारी बनती है। लेकिन अभी तक के हालात तो यही कहते है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस। आज लाठी कांग्रेस के पास है, वह जो चाहेगी वह होगा। लेकिन 2014 में जब लाठी जनता के हाथ में आएगी, वह खुद ही तय करेगी अगली बार लाठी किसके हाथ में देनी हैं। कुल बात यह है कि इस देश जनता को ही तय करना है कि कौन गलत है और कौन सही। फिलहाल अन्ना हजारे और बाबा सही रास्ते पर है, तो कांग्रेस भी सही कदम उठा रही हैं क्योंकि सरकार बचाना और चलाना उसकी जिम्मेदारी बनती है, क्योंकि अभी लाठी उसके पास है

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