मंगलवार, 30 अगस्त 2011

संघर्ष हम करेंगे, अन्ना तुम आराम करो,

अन्ना तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ है का नारा बुलंद करने वालों अब जागते रहना, क्योंकि अन्ना की आवाज ने जब जगा ही दिया है, तो अब क्या सोना? देख लिया सोने का नतीजा. जनता ने कभी अपने नेताओं की नीयत को टटोला नहीं, उन पर भरोसा करके क्या मिला, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, आर्थिक तंगी के सिवाय. वह तो भला हो अन्ना का जिन्होंने इस देश की वर्षों से सोई जनता को जगा दिया, और ऐसा जगाया कि नेताओं को नानीदादी सब याद आ गई. देश की धडक़न दिल्ली में जो आसन जमाया, वहां से जनलोकपाल बिल पास होने का रास्ता साफ़ करवा ही उठे. आखिर सांसदों को संसद में बिल से जुडी तीन महत्वपूर्ण बातो को मानना ही पड़ा. यह ख़ुशी की बात हो सकती है पर अभी आधी जीत हुई है. अन्ना ने अनशन तोड़ने का निर्णय कर लिया. लेकिन अभी खुशियां मनाने का वक्त नहीं आया है, अभी तो यह शुरूआत है, आगे और लड़ाई है, अब बारी जनता की है. अब अन्ना आराम करेंगे और जनता संघर्ष करेगी, अपने प्रदेश में, अपने जिले में, अपने नगर-गांव में, क्योंकि भ्रष्टाचार नस-नस में समाया हुआ, अब नस-नस की सफाई करनी होगी. अब ढूंढने होंगे, अपने दांये-बायें भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी, और अपने भ्रष्ट जनप्रतिनिधि. वह तभी होगा, जब जनता चौकन्नी होकर भ्रष्ट होते हुए सिस्टम पर अपनी पैनी निगाहें रखेंगी. जनलोकपाल बिल के रूप में भ्रष्टाचार से लडऩे का जो हथियार अन्ना ने जनता को उपलब्ध करवाया है, उसका प्रयोग अब जनता को ही करना होगा. अब नेताओं के भुलावे में कभी मत आना, क्योंकि अब बारी नेताओं की है, कांग्रेस हो भाजपा या कोई और दल इस बिल को पास करवाने की दुहाई देते हुए जनता के दरवाजे पर पहुंचने वाले है. लेकिन ध्यान रखना अगर अन्ना और उनकी टीम के साथ-साथ मीडिया और जनता का दबाव न होता, तो यह बिल कभी पास नहीं होता. इन नेताओं के भरसक प्रयास जब अन्ना के हौसले को नहीं डिगा पाए, तब मजबूरी में अन्ना की तीन बातो पर सहमती जताई. वरना उनकी तो पूरी तैयारी थी, कि किसी भी तरह अन्ना अनशन तोड़ दे और बिल भी पास न करना पडे़. लेकिन अन्ना के बुलंद इरादे और जनता के अपार समर्थन के चलते ऐसा न हो सका और अन्ना ने भ्रष्टाचार से लडऩे का अचूक हथियार जनता को उपलब्ध करवा ही दिया. अब अन्ना तुम आराम करो, संघर्ष हम करेंगे.

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

आखिर किस बात का इंतजार है?

अन्ना की आवाज को मिले जबरदस्त जन समर्थन के चलते जहां ने सरकार घुटने टेक दिए है, वहीं विपक्ष पूरी तौर पर अन्ना के साथ आ खड़ा हुआ है। तब यह बात समझ नहीं आ रही है कि अब जनलोकपाल बिल पर बहस की जरूरत क्यों? पहले माना जा रहा था कि सरकार को बिल पास कराने में परेशानी हो रही है। क्योंकि उसको संदेह था कि विपक्ष इस बिल को पास करने की राह में रोड़े अटका जा सकता है। लेकिन अब तो विपक्ष भी अन्ना के साथ आ खड़ा हुआ है। अब सरकार को क्या दिक्कत है। फिर सबसे बड़ी बात जब इस देश का हर नागरिक चाहता है कि जनलोकपाल बिल बनें, तो फिर सरकार क्यों आना-कानी कर रही है। आज हर कोई चाहे गरीब हो या अमीर अपनी खुशी से अन्ना की आवाज से आवाज मिला रहा है। आजादी के बाद से लेकर अब तक किसी भी शख्स को इतना समर्थन नहीं मिला। यह तो जगजाहिर है कि भ्रष्टाचार से हर कोई आहत है। फर्क है तो सिर्फ इतना कि कोई 20 रुपए की रिश्वत देकर दुःखी है तो कोई करोड़ों का घोटाला करके भी खुश नहीं है। अभी कुछ दिन पहले बाबा रामदेव भी रामलीला मैदान पहुंचे थे भ्रष्टाचार के खिलाफ महाभारत का आगाज करने, लेकिन वह खुद ही विवादों में घिरे थे, तो सरकार ने भी रातों-रात उनको वापस आश्रम में भिजवा दिया। लेकिन कहा जाता है कि हर शख्स एक जैसा नहीं होता। जैसे हर कोई गांधी नहीं बन सकता, वैसे ही हर कोई अन्ना नहीं बन सकता। इसलिए अन्ना, अन्ना है। बुलंद भारत की, बुलंद शख्सियत – अन्ना हजारे। अन्ना को हल्के में लेने वाली सरकार के नुमांइदे अब अपनी झेंप मिटाने में लगे है, अन्ना पर दहाड़ने वाले अब माफी मांगते फिर रहे है। आज अन्ना ने देशवासियों को अपने हक के लिए लड़ना सीखा दिया है, उन्होंने बता है कि अपने हक के लिए कैसे लड़ा जाता है। हर पांच साल में घर की चौखट पर हाथ जोड़े नेता जी कैसे मुंह फेर लेते है, इस बात का अहसास भी होने लगा है। यहां पर एक ओर बात है कि लोकतंत्र में चौथा खम्भा माने वाला मीडिया अपनी भूमिका पर खरा उतरता है, रातों-रात अन्ना की आवाज को घर-घर पहुंचा कर उसने जो सराहनीय कार्य किया है, उसकी तो कभी तुलना ही नहीं की जा सकती हैं। यहां पर एक बात समझ नहीं आ रही है कि अन्ना के साथ-साथ देश की जनता चाहती है कि जन लोकपाल बिल पास हो जाए, विपक्ष भी कहता है कि वह अन्ना के साथ है, इस देश से भ्रष्टाचार मिटाना चाहता है, दूसरी ओर कांग्रेस कहती है कि देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए वह कटिबद्ध है। जब सभी जन लोकपाल बिल के साथ-साथ देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना चाहते है तो फिर क्यों समय खराब किया जा रहा है, आखिर देश हमारा है, हमको ही बचाना है तो फिर क्यों दिन पर दिन खराब किए जा रहे है, आखिर किस बात का इंतजार है?

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

गांधी के देश में अन्ना की आंधी

अब तक सिर्फ सुना या पढ़ा था कि गांधी जी थे, जिन्होंने अहिंसा के बल पर देश को स्वतंत्र कराया था और आज अन्ना हजारे ने अहिंसा की ताकत के दर्शन भी करवा दिए. पिछले कई दिनों से दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे अन्ना को जो समर्थन मिला, उसकी कल्पना गांधी जी के अनुयायियों ने कभी नहीं की थी. अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने में माहिर कांग्रेस ने आजादी से लेकर आज तक न जाने कितनी बार सत्ता का इस्तेमाल करते हुए लोकतंत्र का गला घोंट दिया. लेकिन आज अन्ना ने कांग्रेस को अहिंसा के बल पर ही घुटने टेकने को मजबूर कर दिया. आज बच्चा-बच्चा जान गया है अहिंसा की ताकत को, वरना उसको तो आज तक यही सिखाया गया कि झंडा उठाओ और निकल पड़ो नारे लगाते हुए और नतीजा सिफर. भले ही आजादी के बाद शुरूआती दौर में कांग्रेस ईमानदार रही हो, पर समय-समय के साथ-साथ उसके नेताओं की नीयत बदलती गई और देश भ्रष्टाचार के गर्त में डूबता चला गया. कहा जाता है कि एक न एक दिन तो पाप का घड़ा भर ही जाता है, ठीक वैसा ही आज हो रहा है. अन्ना की आवाज को आनन-फानन में दबाने के प्रयास में अन्ना को जेल में डालकर कांग्रेस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली. अन्ना की हिम्मत से देशवासियों का जमीर जाग गया. आज हालात यह है कि देश के कोने-कोने से अन्ना के समर्थन में आवाज निकलने लगी है. यह आवाजें आवाज नहीं हुंकार बन गई है. एक सच यह भी है कि भले ही किसी को पता न हो लोकपाल बिल क्या है, उसके कानून बन जाने पर क्या फायदे-नुकसान होंगे. भ्रष्टाचार कितना दूर होगा, नहीं मालूम. लेकिन भारतवासियों की उम्मीद बन चुके अन्ना पर उसका पूरा भरोसा है, वह जान रहा है कि अन्ना भ्रष्टाचार मिटाने के लिए जो कर रहे है, वह बिलकुल सही है, इसलिए वह अपने व्यस्त समय में समय निकाल कर अन्ना की आवाज को बुलंद बनाने के लिए सडक़ों पर उतर रहा है. हर कोई अपनी हैसियत के अनुसार आंदोलन में भागीदारी कर रहा है, बच्चे पूरे दिन क्लास में पढऩे के बाद रैलियां निकाल रहे है तो बड़े शाम के समय कैंडिल मार्च, कोई गांधी टोपी लगाए ही घूम रहा है तो कोई अपना सिर मुंडवाए बैठा है. हर ओर विश्व विजयी प्यारा तिरंगा दिखाई दे रहा है, जो आज तक सिर्फ २६ जनवरी या १५ अगस्त को ही बक्सों से बाहर निकल पाता है, वह आज सबकी शान बन चुका है. इस सबके बीच एक ही बात सबसे महत्वपूर्ण है कि न कोई हिंसा, न कोई फिजूल की मारमारी, लेकिन फिर भी क्रांति की शुरूआत हो गई. यही तो है अहिंसा की ताकत. कितना अच्छा सा लग रहा है कि वक्त ने ली करवट और धीरे से आ गई गांधी के देश में अन्ना की आंधी.

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

आप सुधरे तो जग सुधरे

आखिर कोई इंसान लापरवाह कैसे हो सकता है, लगभग आठ घंटे के वर्किंग कॉन्सेप्ट वाले फारमेट में काम करने के आदी हो चुके आदमी के पास अपने व्यक्तिगत कामों के लिए लगभग 16 घंटे का पर्याप्त समय होता है. इन 16 घंटे का उपयोग अपनी मर्जी से करने के लिए वह पूरी तरह से आजाद होता है. इसके अलावा नौकरी पेशा लोगों के लिए सप्ताहिक अवकाश के अलावा साल भर में 30-40 छुटि्टयों का प्रावधान भी होता ही है. लेकिन उसके बाद भी वह आदमी अपने वर्किंग पैलेस में लापरवाही के वह उदाहरण प्रस्तुत करता रहता है, जो समझ से बाहर होते है. हां यहां पर एक बात हो सकती है, आप चाहे अपने आफिस के आठ घंटे के वर्किंग टाईम को अपनी ईमानदारी और मेहनत से कुछ कम कर सकते है, पर न जाने क्यों लोग इन आठ घंटों में भी ईमानदारी से काम नहीं करते है. और फिर कहते फिरते है कि इस देश में समस्याओं का भंडार भरा पड़ा है, जबकि वह खुद नहीं जानते कि इन समस्याओं की जड़ में आपकी स्वयं की लापरवाही ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार है. खुद ही सोचिए अगर आप आठ घंटे ईमानदारी से काम कर लेंगे तो मुझे नहीं लगता कि कोई भी काम पेंडिंग हो सकता है या कोई भी समस्या पैदा हो सकती है. लेकिन दुनिया व समाज को बदलने का जज्बा दिल में लिए दिन-रात दुनिया-जहां को कोसने वाले खुद को ही क्यों नहीं बदलते, ताकि आप सुधरे तो जग सुधरे. कहीं भी देख लीजिए मेरी बात गलत नहीं हो सकती है- लापरवाह किस्म के इंसानों से हमारे बैंक, स्कूल, डाकघर, हॉस्पिटल आदि सरकारी ऑफिस भरे पड़े हुए है. जहां पर भारी-भरकम तनख्वाह लेने वाले कर्मियों की काम करने में नानी मर जाती है. इन कर्मियों की कार्यशैली का असर अब प्राइवेट ऑफिसों में आने लगा है. जब तक इस देश का हरेक इंसान ईमानदार नहीं होगा, तब तक इस देश से भ्रष्टचार कभी खत्म नहीं हो सकता है, चाहे कितना भी हो-हल्ला कर लीजिए, कितने भी आंदोलन चला लीजिए, कितने भी कानून बना लीजिए, लेकिन यह सत्य है कि भ्रष्टाचार के समूल नाश के लिए हर इंसान का ईमानदार होना जरूरी है, क्योंकि जब ईमानदार जनता ईमानदारी से अपने नेताओं का चुनाव करेंगी तो ईमानदारी से सरकार चलाना उन नेताओं की मजबूरी होगी. और इसकी शुरूआत हमको खुद से करनी होगी, सबसे पहले हमको खुद अपने प्रति ईमनदार होना होगा, एक बात बचपन से सुनता आ रहा हूं कि समस्याओं के भंवर में फंसे देश में भगत सिंह तो पैदा हो, पर पड़ोसी के घर में. ऐसा कुछ नहीं है, बस आप खुद ईमानदार हो जाइये, सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा फिर किसी भगत सिंह या महात्मा गांधी या बाबा की जरूरत नहीं है, वैसे भी भ्रष्टाचार के हमाम में सभी नंगे है, बस कोई थोड़ा ज्यादा या थोड़ा कम. हमको अपने दिलों-दिमाग से सरकारी- गैर सरकारी नौकरी की बात हमेशा के लिए निकाल देनी चाहिए, क्योंकि वक्त से पहले से और किस्मत से ज्यादा कभी किसी को नहीं मिला है, ईमानदारी से अपना काम करते चलिए, सब कुछ अपने आप सुधरता जाएगा.

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

जिसकी लाठी उसकी भैंस

यही तो बात है कि जब तक किसी ने अपने सुर में सुर मिलाया, तब तक उससे अच्छा दुनिया में और कोई नहीं लगता, बस जैसे ही उसके सुर आपके सुरों से अलग हुए, तन बदन में आग लग जाती है। फिर अपना आपा खो बैठते है, अनाप- शनाप जो मुंह में आया बक देते है, फिर तो अपनी जिंदगी का एक ही लक्ष्य होता है कैसे इसको चुप कराया जाए। फिर जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत ऐसे ही थोडे बुर्जुगों ने बनाई होगी। जब लाठी हमारे पास है तो भैंस को कोई दूसरा कैसे अपना कह सकता है। गांधी जी में दम था तभी तो उन्होंने अंग्रेजों से भैंस रूपी देश को छीन लिया था, पर उसको कौन अपने खूंटे में बांधेगा, इस बात को लेकर नेहरू और जिन्ना में पंगा भी हुआ था। नेहरू चाहते थे वह मलाई खाएंगे, पर जिन्ना भी कम नहीं थे, लेकिन अब गांधी जी तो ठहरे अहिंसावादी, वह सब कुछ कर सकते थे, पर हिंसा नहीं। बेचारे गांधी जी को क्या पता था कि जिस भैंस को उन्होंने अंग्रेजों से मुक्त करवाया है उसको लेकर आपस में इतनी बड़ी जंग छिड जाएगी। थोडी ना-नुकूर के बाद उन्होंने भी जिन्ना को भी मलाई खाने लायक हिस्सा दे ही दिया। बस यही एक छोटी सी भूल सदियों की सजा बन गई। आज भारत हो या पाक दोनों ही संकट के दौर से गुजर रहे है। पाक आतंकी घटनाओं को लेकर विश्व समुदाय में निशाना बना हुआ है, तो भारत भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को लेकर। दुर्भाग्य की बात है कि वर्षो से मलाई खाने वालों से जैसे ही इस देश की जनता ने हिसाब मांगा, वो आग-बबूला हो गए। बात अन्ना हजारे या बाबा रामदेव की नहीं है, वह तो केवल इस जनता की आवाज भर है। यहां पर पूरी तरह से जनता ही दोषी है, क्योंकि उसने आज तक इस बारे में कभी हिसाब नहीं मांगा। मांगती भी कैसे उसको मालूम ही नहीं था। पर जैसे-जैसे समझ बढ़ती गई, वैसे मलाई खाने वालों की करतूतें समझ आने लगी, पर क्योंकि लाठी रूपी सरकार नेहरू जी के वारिसों के पास ही है तो भैंस भी उनकी ही होगी। इस बात को उन्होंने साबित भी कर दिया। गांधी जी के बताए रास्ते पर चलते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन करने वाले अन्ना हजारे से कोई परहेज नहीं है, पर जब बाबा रामदेव ने सत्याग्रह शुरू किया तो रात के अंधेरे में पूरी दुनिया को दिखा दिया कि लाठी में कितनी ताकत होती है। मेरी नजर में अन्ना हजारे हो या बाबा रामदेव दोनों में से कोई भी दोषी नहीं है, क्योंकि इन दोनों ने जिस आंदोलन की शुरूआत की है, उसकी सफलता से इनको किसी भी तरह का व्यक्तिगत लाभ नहीं होने वाला है। हां अगर लाभ की बात आती है तो वह होगा आने वाली पीढ़ी को। यह लडाई बहुत लंबे समय तक चलने वाली है, क्योंकि जब नस-नस बीमार हो चुकी हो, तो इलाज भी लंबा ही चलेगा। जहां तक बात है व्यक्तिगत लाभ की तो आज अन्ना हो या बाबा दोनों ही उस स्थिति में पहुंच चुके है, जहां पर वह आराम से अपना शेष जीवन व्यतीत कर सकते है। इन दिनों कुछ सवाल बहुत तेजी से आ रहे है, जब तक बाबा रामदेव ने आंदोलन शुरू नहीं किया था तब तक वह बहुत ही अच्छे नागरिक थे, दुनिया में भारत का गौरव थे। पर जैसे ही उन्होंने सरकार से इस बात का हिसाब मांगा कि बताइए कितने की मलाई खाई है, उसका हिसाब चाहिए, तो वह सरकार के नंबर वन दुश्मन हो गए, उनका दाहिना हाथ बालकिशन विदेशी मूल का निकल गया। यह तो सबसे अच्छी बात है कि जब तक अपने पक्ष में बातचीत हो तो अच्छा, नहीं तो लाठी का इस्तेमाल करते हुए उसको दुश्मन नंबर वन घोषित कर दो। लेकिन कांग्रेस यह भूल रही है, इस देश की जनता अब जाग चुकी है, इस देश का मीडिया सुधर चुका है, वह जानता है कि आखिर जनता चाहती क्या है, क्योंकि मीडिया समाज का आइना होता है, जब आइना साफ हो तो समाज की धुंधली तस्वीरें भी बहुत साफ नजर आती हैं। यहां पर कांग्रेस यह सकती है कि उसने आजादी के बाद से लेकर आज तक देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दुनिया के सामने भारत को मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा किया हैं। लेकिन कौन होगा जो उनको याद दिलाए कि बाकी की छोडि ए संसद पर हमला हो या मुंबई में ताज पर हमले के दोषियों को आज तक क्यों मेहमान बना कर रखा हुआ है। क्या वह अन्ना हजारे या बाबा से ज्यादा प्यारे है। अगर देश का समुचित विकास कांग्रेस ने ही किया है तो आज बेरोजगारी क्यों अपने चरम पर पहुंच गई, महंगाई दिनो-दिन क्यों बढती जा रही है। हिंसात्मक घटनाओं में तेजी आती जा रही है। किसी भी जनहित की योजना या विश्व स्तरीय आयोजन में भ्रष्टाचार की बू क्यों जाती है। जब सारे अच्छे कामों का श्रेय कांग्रेस लेना जानती है तो इन बातों का जवाब देना भी कांग्रेस की जिम्मेदारी बनती है। लेकिन अभी तक के हालात तो यही कहते है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस। आज लाठी कांग्रेस के पास है, वह जो चाहेगी वह होगा। लेकिन 2014 में जब लाठी जनता के हाथ में आएगी, वह खुद ही तय करेगी अगली बार लाठी किसके हाथ में देनी हैं। कुल बात यह है कि इस देश जनता को ही तय करना है कि कौन गलत है और कौन सही। फिलहाल अन्ना हजारे और बाबा सही रास्ते पर है, तो कांग्रेस भी सही कदम उठा रही हैं क्योंकि सरकार बचाना और चलाना उसकी जिम्मेदारी बनती है, क्योंकि अभी लाठी उसके पास है