गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016

कहीं जनता ही न कर दे सर्जरी

भारत में होने वाले आतंकी हमलों को लेकर केंद्र सरकार ने पहली बार सर्जिकल स्ट्राइक जैसा ठोस कदम उठाया है. इस संबंध में जहां आतंकी हमलों से ग्रस्त विश्व के शक्तिशाली देश भारत सरकार और भारतीय सेना के इस कदम का समर्थन कर रहे है, वहीं भारत के कुछ नेता सबूत मांग रहे है. आखिर यह नेता चर्चाओं में आने के लिए घटिया हथकंडों को अपनाना कब बंद करेंगे. फिल्मी पर्दे के नौटंकीबाजों को तो जैसे सांप ही सूंघ गया है. बात करते है कला के हनन की. अगर आतंकियों को पनाह देने वाले देश के कलाकारों के साथ काम नहीं करेंगे तो इनको मौत आ जाएगी. उरी हमले में 18 सैनिकों की मौत हो या कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं को लेकर अब आमिर खान की श्रीमती किरन राव को डर नहीं लग रहा हैै. अब उन्होंने आमिर से देश छोडने की बात क्यों नहीं की. आतंकियों की मौत से बौखलाए पाकिस्तान की धमकियों के बाद भी किसी साहित्यकार की अंतरात्मा नहीं जाग रही है. अब कोई अवार्ड क्यों नहीं लौटा रहा है. यह बातें दिल को चोट पहुंचाती है जिनको भारतीय जनता ने इतना मान-सम्मान दिया, रातों-रात स्टार बना दिया, वो हस्तियां जब आम इंसान के दिल पर हथौडा मारने जैसी बात करती है तो गुस्सा आना स्वभाविक है. वह भी जब बात पाकिस्तान की हो, जो यहां तक कहता हो कि कश्मीर का फैसला एक क्रिकेट मैच के जरिए कर लिया जाए. आप पूरा टूर्नामेंट हार जाइए कोई बात नहीं, बस पाकिस्तान से जीत जाइए. भावनाओं में विश्वास करने वाली जनता के साथ इतना बड़ा विश्वासघात यकीन करने लायक नहीं होता. भारतीय गर्ल्स के दिलो पर राज करने वाला मैंने प्यार किया का प्रेम हो या पुलिस वाले के रोल में पांडे जी हो, बजंरगी भाई जान या फिर बेबी को बेस पसंद है वाले सलमान खान की न्यू रिलीज के लिए अपना पेट काटने वाले हो या जेब खर्च बचाकर स्कूल गोइंग स्टूडेंट्स, हाउसफुल करने वाले पाकिस्तान नहीं भारत में ही बसते है.. जब हर बात हर मामले में बात लाइन खींचने पर आ जाए तो फिर कलाकार अलग दुनिया से नहीं आते है, इनको इतनी सी बात समझ लेनी चाहिए. बात-बात पर सबूत मांगने वाले अरविंद केजरीवाल, जब अन्ना हजारे के कंधों पर चढ़कर राजनीति में शुचिता की बात करते थे, तब किसी ने उनसे उनकी ईमानदारी का सबूत मांग लिया होता तो आज भारतीय सेना और दिल्ली की जनता के साथ-साथ भारतीयों को यह दिन नहीं देखना पड़ता. ऐसा कैसे हो सकता है कि भारतीय राजनीति को एक नई दिशा देने वाला राजनेता पाकिस्तानी सेना की आंखों का सितारा बन जाए. सर्जिकल स्ट्राइक को फर्जी बताने वाले संजय निरुपम के बयान से नाराज सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने नेता जी की सर्जरी की शुरूआत करते हुए मुंबई कांग्रेस के एक कार्यक्रम का बहिष्कार करने का फैसला किया है. अब इस पर कांग्रेस ने तुरंत मीडिया प्रमुख रणदीप सुरजेवाला से बयान दिलवाकर कहा कि सोनिया गांधी और राहुल गाधी दोनों ही सर्जिकल स्ट्राइक मामले में सेना और सरकार के साथ है. तब ऐसे मे निरूपम क्या साबित करना चाहते है.
सालों बाद भारत का नेतृत्व पॉवरफुल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे है और वह पॉवरफुल बने है भारतीय जनता के अपार समर्थन से. अब अगर वह आतंक का जवाब देने में सक्षम है तो किसी को क्या दिक्कत. भारतीय सीमाओं पर हाई वोल्टेज टेंशन के बावजूद भी हम घरों में चैन से सो रहे है तो यह सेना का दम है. प्रधानमंत्री का फुल बैकअप और भारतीय सेना की सिर्फ एक सर्जिकल स्टाइक ने ही आतंकियों के साथ-साथ पाकिस्तान के होश पाख्ता कर दिए है तो किसी को परेशानी क्यों हो रही है. 
एक बात और है सर्जिकल स्ट्राइक पर पाक सबूत मांग कर अपने गले मे फांस क्यों डालेगा. वह तो अमन पसंद देश है. राजनेताओं को भी समझ लेना चाहिए कि राजनीति करने के लिए कई अनसुलझे मुद्दे है, जिनका समाधान होना बाकी है. अगर यह नेता इस संबंध में कुछ अच्छा नहीं कर सकते तो अपना मुंह बंद रखना ही इनके लिए बेहतर होगा, क्योंकि यह पब्लिक है सब जानती है. अंदर क्या है- बाहर क्या है. और यह ताकत दी है उसे सोशल मीडिया ने. बदलते दौर में तेजी से बदलती टेक्नोलॉजी के चलते किसने कब क्या कहा, सब कुछ वायरल हो जाता है. ऐसे में देश विरोधी या जन विरोधी बयानबाजी करने वालों को ध्यान रखना होगा, कब, कहां, क्या और क्यों बोलना है. इन नेताओं और कलाकारो की थोड़ी नहीं बहुत जिम्मेदारी बनती है, क्योकि इनके साथ-साथ इनके समर्थकों से कहीं सौहार्दपूर्ण वातावरण दूषित न हो जाए. कम से कम देश के मामले में एक रहना इनको आना ही चाहिए. कहीं ऐसा ना पाक से बौखलाई जनता इनकी ही सर्जरी न कर दें.

शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

अहिंसा-हिंसा के बीच तालमेल मतलब सफलता

आराधना शक्ति की देवी की और जन्मदिन अहिंसा के पुजारी का. अहिंसा और हिंसा की जुगलबंदी के बीच सर्जिकल स्ट्राइक. विजय दिवस (दशहरा) के पहले ही विजय जैसा उल्लास. पानी रोकना था सिंधु का और रूक गया ब्रह्मपुत्र का. राक्षसी प्रवृति के विनाश के लिए मां ने काली का रूप धर राक्षसों का विध्वंस किया, तो महात्मा गांधी ने मानवता के लिए हिंसा को ही त्याग दिया. कोई एक गाल पर चांटा मारे तो दूसरा गाल भी आगे करने वाले महात्मा गांधी के देश का वक्त बदला, तौर-तरीके बदले, इतना बदले कि दूसरा गाल आगे करने की बजाय सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए जमीन में ही दफना दिया, उन्हें जिन्होंने भारत के जवानों को मौत की नींद सुला दिया था. दुश्मन का दुश्मन दोस्त की बात पर चलते हुए चीन ने पाकिस्तान के दुश्मन के खिलाफ ब्रह्मपुत्र का पानी ही रोक दिया, क्योंकि भारत ने हिंसा न करने  की बजाय पाकिस्तान को अन्य मोर्चो पर पराजित करने के लिए सिंधु नदी समझौता रद्द करने की कवायद शुरू कर दी थी. हर बात एक दूसरे की पूरक होती है. यह भी अजीब इत्तेफाक है कि जहां अहिंसा पुजारी हिंसा का शिकार हो गया, वहीं हिंसा (शक्ति) के बल पर राक्षसों का वध करने वाली देवी की आराधना करने वाले असुरी वस्तुओं का सेवन तक नहीं करते. कुल मिलाकर बात इतनी सी है कि पूर्ण सफलता के लिए अहिंसा-हिंसा के बीच तालमेल होना जरूरी है. सिर्फ अहिंसा का गुणगान करने से दुश्मन छाती पर चढ़ आता है तो हिंसा करने से राक्षसी प्रवृत्तियां घर कर जाती है.  इन दोनों के सटीक मिश्रण से ही सफलता का स्वाद चखा जा सकता है. जैसा कि उरी घटना के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अहिंसात्मक रूख अपनाते-अपनाते अचानक हिंसात्मक कार्रवाई के बाद भारतीयों को महसूस हो रहा है.