मंगलवार, 27 जुलाई 2010

प्रेरणा स्रोत


यह नामों की लिस्ट नहीं है, न ही पत्थर की एक मूर्ति भर. यह स्तम्भ बना है, उनकी यादों को जिंदा रखने लिए जिन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगा दी, हमारे प्राणों के लिए. इस स्तम्भ पर उकेरे गए नाम तो सिर्फ एक छोटी सी निशानी है, उनको यादों को हमेशा जिंदा रखने के लिए. इस स्तम्भ पर अंकित एकएक अक्षर हमारे और आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत है. आज हम और आप सिर्फ और सिर्फ इन नामों की बदौलत सुकून से अपना जीवन जी पा रहे है. जरा सोचिए अगर इन नामों ने भी ऐशोआराम की चाह रखी होती, तो हमारा क्या होता. हमारा हर पल, हर दिन चैनोसुकून से बीते, हम पर कोई आंच न आए, उसके लिए इन्होंने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया. ऐसे साहसी और देश पर मरमिटने वालों को हमारा कोटिकोटि प्रणाम.

सोमवार, 19 जुलाई 2010

आखिर क्यों बात की जाए.

आखिर क्यों बात की जाए. वह भी उससे जिसने आज तक दुःख और तबाही के सिवा कुछ न दिया हो. वह लम्हें इतिहास बन चुके है, जब उसने कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़ी थी. अब वक्त बदल चुका है. आज हम भी आजाद है और वह भी स्वतंत्र. हम क्यों भूल जाते है कि आज हमारा देश अपने दुश्मन को करारा जवाब देने में सक्षम है. जरूरत है तो बस दृढ़ इच्छा शक्ति. उसकी धोखेबाजी के सैकड़ों किस्से हमारे सामने है और हम विश्र्वास पर विश्र्वास करते जा रहे है. आखिर क्यों?
लाख टके का एक ही सवाल दिमाग में घूमता रहता है, आखिर कब तक हम पाक से बातचीत करने का ढकोसला करते रहेंगे. अगर नेताओं को पाक से इतना प्यार है कि वह उसके खिलाफ कोई कठोर कदम उठाने से कतरा रहे है तो क्यों नहीं, उसकी बात मानकर कश्मीर उसके हवाले कर देते. रही बात भारतीयों की तो वह कुछ दिन होहल्ला मचाएगे और भूल जाएंगे, ठीक उसी तरह जैसे आजादी के दीवानों को भुला दिया गया है. न जाने क्याक्या भुला दिया है. पाक को कश्मीर सौंपने की घटना को भुला दिया जाएगा.
इससे एक फायदा होगा, आने वाली पीढ़ी को इस ओर तो ध्यान नहीं देना पड़ेगा और अपना वक्त बर्बाद नहीं करेगी. क्योंकि यह एक ऐसा सवाल है, जिससे हर भारतीय परोक्ष या अपरोक्ष रूप से जुड़ा हुआ है, और जब तक इसका हल नहीं निकलेगा तब तक वह भी परेशान होता रहेगा. और अच्छी सोच विकसित करने के लिए पाक से संबंधित हर सोच, हर बात को भुलाना होगा. तभी हम आगे के लिए कुछ सोच पाएगे.आजादी से लेकर अब तक पाक से बातचीत के नाम करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा दिए गए है. और उससे लड़ाई और सुरक्षा के नाम पर खरबों रुपया बर्बाद हो चुका है, अनगिनत जानों का तो कोई मोल ही नहीं है. कन्याकुमारी से कश्मीर और राजस्थान से लेकर अरूणाचल प्रदेश तक के आम भारतीय को एक ही चिंता जताती रहती है कब मौत उसके सामने आकर खड़ी हो जाए. इतनी दहशत फैलाने वाले पाक से आखिर हमारे नेता दहशत में ही तो बात नहीं करते. पाक भारतीयों के गले की ऐसी फांस बन चुका है जो बाहर निकलती और न ही गले से नीचे उतरती.
फिर हमारे नेताओं की दरियादिली कहो, या पाक का डर की वह उससे बात करके खुश है. और हम यह सोच कर खुश है चलो आज का दिन अच्छा गुजर गया, कल की कल सोचेगे..