सोमवार, 18 जुलाई 2011

खामोश निगाहें

खामोश निगाहें,
सिले हुए होंठ,
न जाने
क्या ढूंढ़ते है
इस जमीं पर
हर रात को
चांद को देख
मन में जागती
एक आस
अपना भी हो
कोई चांद जैसा
शांत-चंचल चित्तचोर
जो चुरा ले मेरे सीने से
मेरा क्रोध, मेरी नफरत
जिसने छीन ली
मुझसे मेरी इंसानियत
अब तो बस
चांद से करते है गुहार
कोई मिल जाए
और मुझे भी बना दे
चांद जैसा
शांत- शीतल
और ले आए
इस तपती
झुलसती जिंदगी में
प्यार की शीतल बहार

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