मंगलवार, 12 अगस्त 2014

यह कौन आया?

यह कौन आया
छेड़ दिए दिल के तार
दिल से निकली आहट
वर्षों से तलाश थी जिसकी
दिल में सिमटी यादें ताजा होकर
चल पड़ी मस्तिष्क की ओर
और मस्तिष्क ने उठा दिया
उस नींद से
जिसमें सोते हुए जाग रहा था मैं
अब आंखे भी खुल चुकी थी
दिल और आंखों के मिलन के बाद
स्थिति बिलकुल साफ हो गई
और मेरे मस्तिष्क ने बता दिया
अरे भाई सो जाओ यह तो
सपना था, जो पूरा न हुआ
अब बार बार आता है तुम्हारी नींदों में
क्योंकि जब तुम जागते हो,
तो तुम्हारी आंखें उसको देख लेती है
इसलिए वह आता है चुपके से
तुम्हारी नींदों में ताकि तुम पहचान न सको
एक और जरूरी बात मेरे मस्तिष्क ने बताई
अब तुम कभी खुली आंखों से सपने मत देखना
जो भी सोचो उसको साकार करने का प्रयास करो
नहीं तो वह फिर आएगा तुम्हारी नींदों में
और तुम हर बार यही कहते रह जाओगे
यह कौन आया जिसने छेड़ दिए दिल के तार.