सोमवार, 11 जुलाई 2011

बस यूं ही

बस यूं ही चलता जा रहा हूं
अनजाने रास्तों पर
न जाने किस मोड़ पर
जिंदगी की शाम हो जाए
एक खुशी की तलाश में
गम को गले लगाता जा रहा
एक सुबह के इंतजार में
काली स्याह रातों से लड़ता जा रहा
जिधर भी दिखती उम्मीद की किरण
उधर ही मुड़ जाते कदम मेरे
तेजी से उठते कदम अचानक थम जाते
संभल जाता मैं, जब दिखाई देता इंसान
मैंने पूछा, क्या तलाश कर रहे हो
वह बोला, इंसानियत को ढूंढ रहा हूं
न जाने कहां खो गई, या मर गई
नहीं पता चल रहा है, कुछ मदद करो
मैंने कहा, अपने दिल से पूछो
मैं क्या बता सकता हूं और फिर
मैं चल पड़ता उन अनजाने रास्तों पर
जहां से शायद ही कभी वापस लौट सकूं
बस यूं ही चलता जा रहा हूं
एक खुशी की तलाश में
गम को गले लगाता जा रहा हूं.

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