रविवार, 9 अप्रैल 2023

पावर गेम


 राजनीति का पावर गेम समझना हरेक के बस की बात नही है. राजनीति की बिसात पर न जाने कौन सा प्यादा राजा को ठिकाने लगा दे. न जाने किस चाल से पैदल वजीर और वजीर लाचार हो जाए. इस बात का पता जब तक चलता है तब तक चिडिया खेत चुग गई होती है. माना जयचंद इतिहास नही बनाते, लेकिन सत्ताधीशों का तख्ता पलट करने वाला कोई छुपा रूस्तम होता है. समय पर फुंसियों का इलाज न किया जाए तो नासूर तो बनना ही है. फिर क्या जितना बड़ा जख्म उतना बड़े प्रयास. प्रयास असफल होने पर गला फाडऩे का कोई मतलब नहीं. यूं भी कोई किसी चीज का अचानक उदय नहीं होता. सब योजनाबद्ध तरीके से अपने अंजाम तक पहुचता है. सब कुछ पकता ही है फिर चाहे कढ़ाही में पके या कुकर में. कढ़ाई में भी अगर जरूरत से ज्यादा पका दिया तो जलकर खाक ही होता है और अंदरखाने भी कुछ पक रहा हो तो भी संकेत मिलते ही है. ठीक वैसे ही जैसे कुकर में पकने पर भी सीटी तो बजती ही है. सीटी की आवाज पर ध्यान न देने की वजह से ही कुकर फट जाता है. सीधी सी बात है कि समय पर चीजों पर ध्यान न दिया जाए तो उसके घातक परिणाम ही सामने आते है.  फिर न जाने कैसे हो गया, पता ही नहीं चला. दरअसल यही तो पावर गेम है. हर कोई समझ गया तो उत्सुकता और सदमा जैसे शब्दों को कौन पूछेगा. हर बात के संकेत मिलने शुरू हो जाते है, लेकिन दूसरे को कमतर आंकने की गलती का अंदाजा तभी होता है जब चींटी नाक में घुस जाती है.