गुरुवार, 25 अगस्त 2011

गांधी के देश में अन्ना की आंधी

अब तक सिर्फ सुना या पढ़ा था कि गांधी जी थे, जिन्होंने अहिंसा के बल पर देश को स्वतंत्र कराया था और आज अन्ना हजारे ने अहिंसा की ताकत के दर्शन भी करवा दिए. पिछले कई दिनों से दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे अन्ना को जो समर्थन मिला, उसकी कल्पना गांधी जी के अनुयायियों ने कभी नहीं की थी. अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने में माहिर कांग्रेस ने आजादी से लेकर आज तक न जाने कितनी बार सत्ता का इस्तेमाल करते हुए लोकतंत्र का गला घोंट दिया. लेकिन आज अन्ना ने कांग्रेस को अहिंसा के बल पर ही घुटने टेकने को मजबूर कर दिया. आज बच्चा-बच्चा जान गया है अहिंसा की ताकत को, वरना उसको तो आज तक यही सिखाया गया कि झंडा उठाओ और निकल पड़ो नारे लगाते हुए और नतीजा सिफर. भले ही आजादी के बाद शुरूआती दौर में कांग्रेस ईमानदार रही हो, पर समय-समय के साथ-साथ उसके नेताओं की नीयत बदलती गई और देश भ्रष्टाचार के गर्त में डूबता चला गया. कहा जाता है कि एक न एक दिन तो पाप का घड़ा भर ही जाता है, ठीक वैसा ही आज हो रहा है. अन्ना की आवाज को आनन-फानन में दबाने के प्रयास में अन्ना को जेल में डालकर कांग्रेस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली. अन्ना की हिम्मत से देशवासियों का जमीर जाग गया. आज हालात यह है कि देश के कोने-कोने से अन्ना के समर्थन में आवाज निकलने लगी है. यह आवाजें आवाज नहीं हुंकार बन गई है. एक सच यह भी है कि भले ही किसी को पता न हो लोकपाल बिल क्या है, उसके कानून बन जाने पर क्या फायदे-नुकसान होंगे. भ्रष्टाचार कितना दूर होगा, नहीं मालूम. लेकिन भारतवासियों की उम्मीद बन चुके अन्ना पर उसका पूरा भरोसा है, वह जान रहा है कि अन्ना भ्रष्टाचार मिटाने के लिए जो कर रहे है, वह बिलकुल सही है, इसलिए वह अपने व्यस्त समय में समय निकाल कर अन्ना की आवाज को बुलंद बनाने के लिए सडक़ों पर उतर रहा है. हर कोई अपनी हैसियत के अनुसार आंदोलन में भागीदारी कर रहा है, बच्चे पूरे दिन क्लास में पढऩे के बाद रैलियां निकाल रहे है तो बड़े शाम के समय कैंडिल मार्च, कोई गांधी टोपी लगाए ही घूम रहा है तो कोई अपना सिर मुंडवाए बैठा है. हर ओर विश्व विजयी प्यारा तिरंगा दिखाई दे रहा है, जो आज तक सिर्फ २६ जनवरी या १५ अगस्त को ही बक्सों से बाहर निकल पाता है, वह आज सबकी शान बन चुका है. इस सबके बीच एक ही बात सबसे महत्वपूर्ण है कि न कोई हिंसा, न कोई फिजूल की मारमारी, लेकिन फिर भी क्रांति की शुरूआत हो गई. यही तो है अहिंसा की ताकत. कितना अच्छा सा लग रहा है कि वक्त ने ली करवट और धीरे से आ गई गांधी के देश में अन्ना की आंधी.

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