बुधवार, 15 जून 2022

पत्थर बना भगवान

(16-17 जून 2013 केदारनाथ आपदा)

विज्ञान और धर्म में लंबे समय से द्वंद्व चला आ रहा है. ऐसा ही कुछ हुआ था. देवभूमि उत्तराखंड में.  केदार घाटी में आपदा के बाद इस द्वंद्व में फिलहाल धर्म की ही विजय दिखाई दे रही थी. कहानी बाबा केदार की रक्षा को लेकर है. एक भीमकाय पत्थर कैसे इतनी ऊंचाई से मंदिर के पीछे आकर ठहर गया इस पर विज्ञान फिलहाल कुछ कहने की स्थिति में नहीं था. पर धर्म ने एक ऐसी कहानी रच दी थी जो इस इक्कीसवीं सदी में सर्वमान्य होकर स्वीकार कर ली गई थी. तभी तो कहते हैं यह भारत है, जहां इंसान तो इंसान, पत्थर भी पूजे जाते हैं. केदार मंदिर के ठीक पीछे दीवार की तरह खड़ी इस शिला का वजन कई टन होने का अनुमान लगाया गया था. लंबाई आठ बाई चार थी. पत्थरों की बरसात के बीच केदारनाथ मंदिर की पश्चिम दिशा के ठीक 10 मीटर पीछे आकर यह ठहर गया था. इस भारी बोल्डर से टकराने के बाद ही मंदाकिनी, केदारद्वारी व सरस्वती नदी के रौद्र पर काफी हद तक ब्रेक लग सका. तीनों नदियां अपना रास्ता बदलने को मजबूर हो गईं तो कई बड़े पत्थर इस शिला से टकराकर चूर-चूर हो गए थे. अगर ये पत्थर मंदिर के पीछे आकर नहीं रुकता तो तबाही क्या आलम होता, सोचा भी नहीं जा सकता है. एक तरफ जहां इक्सवीं सदी के वैज्ञानिक दिव्य शिला के रहस्य पर रिसर्च कर रहे थे, वहीं धार्मिक दृष्टि से इस रहस्य से परदा उठा देने का दावा किया जा रहा था. स्थानीय पुजारियों की मानें तो बाबा मंदिर की रक्षा के लिए साक्षात महाबली भीम प्रकट हुए थे. महाबली भीम ने ही अपनी असीम ताकत से बाबा मंदिर की रक्षा की और महाबली भीम के रूप में यह दिव्य शिला इसका उदाहरण है. महाभारत की कथाओं के अनुसार पांडव शिव के बड़े भक्त थे. वे जहां- जहां गए वहां शिव मंदिर बनवाया. उत्तराखंड की पहाडिय़ों में इस बात के प्रमाण आज भी मौजूद हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार जब पांडव सपरिवार स्वर्ग के लिए गए थे तो रास्ते में बाबा केदार के द्वार भी रुके थे.

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