शुक्रवार, 25 मार्च 2022

याद ना जाए बीते दिनों की


आजादी के बाद से अधिकांश समय तक कांग्रेस ने ही देश की सत्ता संभाली है। सबसे पुरानी और सबसे बड़ी पार्टी के नुमाइंदे आज अपनी जिम्मेदारियों से भागते नजर आ रहे है। आज भले ही अन्य राजनीतिक दल अस्तित्व में आ गए है, यह अलग बात है। उनका गठन हुए अभी समय ही कितना हुआ है, कांग्रेस की तुलना में तो उनके अभी दूध के दांत भी नहीं टूटे है। देश के किसी भी हिस्से में किसी भी स्तर का मामला हो, वहां पर कांग्रेस मुख्य पार्टी के रूप में मौजूद रहती है। आज भी लगभग हर घर का मुखिया या सबसे बड़ा सदस्य कांग्रेस के खिलाफ कुछ भी सुनना पसंद नहीं करता है, इसकी वजह साफ है उसने कांग्रेस के स्वर्णिम दिनों को देखा है, उसने देखा है कांग्रेस का जोश, कांग्रेस की ताकत और देखी है कांग्रेसजनों की वह आंधी, जिसमें उड़ गए वह अंग्र्रेज, जो सालों से राज कर रहे थे, हिन्दुस्तान पर। तब ऐसे में आज कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह बुजुर्ग कांग्रेस से अलग होकर किसी अन्य के बारे में सोचे। वह बुजुर्ग जिसने अपना संपूर्ण जीवन कांग्रेस को समर्पित कर दिया, वह अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव पर कैसे कांग्रेस का साथ छोड़ सकता है। समय के साथ-साथ बदलते हालात में अवसरवादिता हावी होती जा रही है। आज व्यक्तिगत हित देश हित से बड़े हो गए है। तब ऐसे में आश्चर्य तो होगा ही कि देश को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराने के उद्देश्य से गठित कांग्रेस अपनी हर गलती की जिम्मेदारी उन दलों पर डाल कर अपने दामन को बेदाग साबित करने में जुटी है। वह ऐसा क्यों कर रही है, थोड़ा बहुत समझ में आता है, राजनीतिक पार्टी राज हासिल करने के लिए जोड़-तोड़ तो करेंगी ही, क्योंकि उसको सत्ता हासिल करनी है। यह बात बिलकुल समझ नहीं आती है कि जब कांग्रेस पूरी ईमानदारी से अपने को बेदाग साबित करते हुए हर बार सत्ता हासिल करने का प्रयास करती है तो आम जनता क्यों ईमानदारी से अपने मत का प्रयोग नहीं करती। कुछ साल पहले कांग्रेस के विकल्प के तौर पर अन्य दल नहीं थे, लेकिन अब समय बदल चुका है, राष्ट्रीय राजनीति में अन्य दल भी मौजूद है। जब हमारे सामने विकल्प मौजूद हो तब एक ही दल के प्रति निष्ठावान होना समझ से बाहर हो जाता है, वह भी उस दल के प्रति जो देशवासियों की निष्ठा के साथ खिलवाड़ कर रहा हो।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें