शनिवार, 19 मार्च 2022

वक्त और हम

वक़्त से दिन और रात, वक़्त से कल और आज

क़्त की हर शै गुलाम, वक़्त का हर शै पे राज । 

कहते है वक्त जब मुंह मोड ले तो सब कुछ खत्म हो जाता है और जब वक्त साथ दे तो सब कुछ अपना हो जाता है. पर हम यही पर गलत हो जाते है. जो वक्त को ठीक से पहचान नहीं पाते. क्योंकि वक्त अपनी एक सी स्पीड से लगातार चलता रहता है. बस हम ही उसे पकड़ नहीं पाते. हम निराश और हताश होकर चलना बंद कर देते है और वक्त आगे निकल जाता है. अनगिनत उदाहरण है, जिन्होंने वक्त की स्पीड से आगे निकल कर उन बुलंदियों को छूकर अपने लिए वो मुकाम हासिल किया है, जो आने वाली पीढिय़ों के लिए आदर्श बन गए. हम ही अपने जीवन से हार मानकर उदास हो जाते है और कहते है कि वक्त ने हमारा साथ नहीं दिया. वक्त आएगा कहां से. उसको तो हमने ही छोड़ा है. और जिसको हमने ही छोड़ दिया, वह हमें मिलेगा कहां से. वक्त के साथ चलने के लिए हमको ही कोशिश करनी होगी. हमको ही बदलना होगा. वक्त को पकडऩे के लिए हाई स्पीड ट्रेने बनाई गई. जब उनसे भी बात नहीं बनी, तो हवा में सफर के लिए जहाजों को लाया गया. वक्त से आगे निकलना है, तो उदासी का आलम छोडऩा पड़ेगा. लगातार अपडेट रहने के साथ ही अपने लिए एक मुकाम निश्चित करके तेजी के साथ उसके लिए प्रयास करना होगा. क्योंकि वक्त ने कभी भी किसी एक का साथ नहीं दिया, वह तो सबके लिए एक सा ही होता है. बस हम ही उससे दूर और पास होते रहते है. दुनिया में कई देशों ने वक्त की नजाकत को समझते हुए विकास के वह मुकाम हासिल कर लिए है, जिनके बारे में हम ही सिर्फ सोच ही सकते है. और हम इतना पीछे छूट गए है कि वहां तक पहुंचना अभी भी नामुमकिन सा लगता है. हमारा कमजोर पहलू है कि अति उत्साह. और इसी अति उत्साह के कारण हम वक्त पर कोई भी काम करने की आदत नहीं है, और अपने पिछड़ेपन का सारा दोष वक्त पर डाल कर अपना दामन बेदाग कर लेते है.

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