बुधवार, 29 अप्रैल 2020

अखबार की गाड़ियां बनी मरीजों की उम्मीद

जीत जायेंगे हम, तू अगर संग हैं
ज़िन्दगी हर कदम, एक नयी जंग हैं
अरविंद भंडारी, आदेश, राकेश, सोनू, रवि, विशाल, मनोज, रमेश मुकेश, मदन, बबलू, शिब्बू, सोनू, बृजेश नेगी, भरत बिष्ट और काली. ये वो नाम है जिनका इंतजार गढ़वाल में रहने वाले हर उस शख्स को रहता है जो कोरोना से इतर किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त है. वजह साफ है कि कोरोना से बचने के लिए उत्तराखंड का हर जिला लॉकडाउन है. जिसमें अखबार की गाड़ियों को ही छूट मिली है. उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर से देहरादून में ही अव्वल दर्जे के हॉस्पिटल है. गोपेश्वर, उत्तरकाशी, टिहरी हो या पौड़ी श्रीनगर के बीमार लोगों का इलाज के लिए देहरादून आना- जाना लगा ही रहता था. लेकिन लॉक डाउन की वजह से वह सब बंद हो चुका है. भले ही दवाखाने छूट के दायरे में शामिल हो लेकिन डॉक्टरी पर्चे पर दवाई डॉक्टर की नजर के इर्द-गिर्द स्थापित दवा खाने पर ही मिल सकती है. तब ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि देहरादून में इलाज कराने वालों की दवाइयां देहरादून में ही मिलती है. व्हाट्सएप और गूगल पे होने के बाद भी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि देहरादून से दवाई उन पेशेंट को कैसे मिले जो पहाड़ों के सुदूरवर्ती इलाकों में रह रहे हैं. बस इस चुनौती को स्वीकार किया है अखबार ले जाने वाले वाहन चालकों ने. उत्तराखंड के प्रमुख अखबारों के छापेखाने देहरादून में ही स्थापित है. तब ऐसे में वाहन चालक हर रात देहरादून से अखबार के साथ-साथ दवाइयों के बंडल्स भी अपने साथ ले जाते हैं, जो सुबह होते-होते 200 से 400 किलोमीटर तक की दूरी तय करके अपने गंतव्य पर पहुंच जाते हैं. और इस तरह से दुनिया-जहान की खबरों के साथ-साथ जीवन दायक दवाइयां भी उन लोगों को मिल जाती हैं, जो लॉक डाउन की वजह से अपनी दवाइयां लेने के लिए देहरादून भी नहीं आ सकते हैं. इन वाहन चालकों का कहना है कि कोरोना से लड़ने के लिए पूरी दुनिया लगी है. लेकिन कोरोना से इतर पहाड़ों में रहने वाले बीमार व्यक्तियों के लिए जरूरी दवाओं को पहुंचा कर मन को सुकून मिलता है कि हम किसी के काम आ रहे हैं. इन दिनों अखबार के वाहन को देखकर कोई रोकता है तो पहला सवाल मन में यही आता है कि यह जरूर किसी की दवा पहुंचाने के लिए ही रोक रहा है. और लगभग होता भी यही है.
#CoronaWarriors #Newspaper

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