गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

शेर- मछली का याराना और चूहों की चिंता

घर-घर का कोना-कोना कुरेदने वाले चूहे बहुत परेशान है कि भीगी बिल्ली के गले में घंटी तो कोई भी बांध देता. लेकिन नींद में मालूम ही नहीं चला कि कब जनता ने बिल्ली की जगह शेर को अपना सरदार बना दिया. शेर भी ऐसा कि जिसने तहखाने तो तहखाने, छोटे-मोटे बिलों को भी खंगालने का फरमान जारी कर दिया. हैरान, परेशान, बेहाल चूहों की बैठक-दर-बैठक बेनतीजा ही साबित हो रही है. बिल्ली के गले में बांधने के लिए खरीदी गई घंटी खुद के गले की फांस बन गई. मामले को डायवर्ट करते हुए चूहों का मछलियों पर प्यार उमड आया. कि ठीक है जिन्होंने मलाई खाई है, उनको शिकार बनाइए, बेचारी मछलियों का क्या दोष. कि पूरा तालाब सुखा दिया. लेकिन यहां तो यह दांव भी उल्टा ही पड़ गया. मगरमच्छ के बच्चों की आशंका के चलते ही तालाब की सफाई करवाने के लिए तडपती-बिलखती मछलियां खुद ही शेर के साथ जा खड़ी हो गई. आरामतलबी के दौर में सरकार ने कभी कुछ कहा भी तो चूहों ने अपना दिमाग भिड़ा कर अपनी पौ-बारह कर ली. और मारी गई मछलियां. मलाई खानों वालों को दूूध का दूध और पानी का पानी नजर आने लगा है, अंधेरों में छुप कर गाढ़ी कमाई पर हाथ साफ करने वाले चूहे भूल गए कि यह टेक्नोलाॅजी का वो दौर है कि जब चीजों का आदान-प्रदान आॅनलाइन होता है. जिसमें चीजे हवा में चलती है न कि तारों पर. जब चीजे तारों पर चलती थी तब चूहों ने घर-घर के कनेक्शन ही काट दिए थे. अब हर हाथ में मोबाइल, हर घर में टीवी. सीधा संवाद, मन की बात क्या हुई कि मछलियों और शेर की दोस्ती इतिहास के उन पन्नों पर आ खड़ी हुई, जहां से आगे बुलंद भारत की वो गाथा लिखी जाएगी कि आने वाली पीढ़ियां भी गर्व से कहेगी कि हम भारतीय है.

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