शनिवार, 10 अगस्त 2013

और हम बदनाम हो गए.

हम तो यूं ही अच्छे थे.
सबसे से अलग, सबसे जुदा
अपनों की आंखों का नूर.
पर क्या करें
जमाने की हवा चली
और हम बदनाम हो गए.
बदनामी का नाम हुआ इतना
कि खुद को ही भूल गए
किस-किस से लड़े
किससे करें शिकायत.
अब तो बस यूं ही
जानता हूं मैं
नहीं मोड़ सकता आंधियों का रूख
पर इतना भी तय है कि
नहीं डिग सकता है मेरा हौसला
क्योंकि मैं हूं
सबसे बेहतर, सबसे जुदा.

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