करवा चौथ. भारतीय संस्कृति का एक सर्वश्रेष्ठ त्यौहार. पिया की लंबी आयु व्रत. अंधेरा छाते की चांद उगने की खबर ब्रेक करने की होड़ में बच्चों की एक नजर आसमां पर तो दूसरी नजर मम्मा पर. बच्चों का यह उत्साह इस त्यौहार की सबसे बड़ी खूबसूरती है. बाजारवाद ने भले ही व्रत पर भी कब्जा कर लिया हो, यह अलग बात है. वैज्ञानिकों की नजर में चांद भले ही सैटेलाइट्स का पार्किंग स्थल हो, लेकिन पिया की लंबी उम्र के लिए व्रत को को तोड़ने की जिम्मेदारी तो चांद ही निभाता है. भारत में वैसे तो चौथ माता जी के कई मंदिर स्थित है, लेकिन सबसे प्राचीन एवं सबसे अधिक ख्याति प्राप्त मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गाँव में स्थित है. चौथ माता के नाम पर इस गाँव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया. चौथ माता मंदिर की स्थापना महाराजा भीमसिंह चौहान ने की थी.
करवा चौथ व्रत-कथा 1 –
एक साहूकार था जिसके सात बेटे और एक बेटी थी | सातों भाई व बहन एक साथ बैठ कर भोजन करते थे|एक दिन कार्तिक की कृष्ण पक्ष की चौथ का व्रत आया तो भाई बोला की बहन आओ भोजन करे|बहन बोली की आज करवा चौथ का व्रत है, चाँद उगने पर ही खाऊगी |
तब भाइयो ने सोचा की चाँद उगने तक बहन भूखी रहेगी तो एक भाई ने दिया जलाया,दूसरें भाई ने छलनी लेकर उसे ढंका और नकली चाँद दिखाकर बहन से कहने लगा की चल चाँद निकल आया है –अर्ध्य दे लें |बहन अपनी भाभियों से कहने लगी की चलो अर्ध्य दें ,तो भाभिया बोली,तुम्हरा चाँद उगा होगा हमारा चाँद तो रात में उगेगा | बहन ने अकेले ही अर्ध्य दे दिया और खाना खाने लगी तो पहले ही ग्रास में बाल आ गया, दूसरे ग्रास में कंकड आया और तीसरा ग्रास मुँह तक किया तो उसकी ससुराल से संदेशा आया कि उसका पति बहुत बीमार है जल्दी भेजो |
माँ ने जब लड़की को विदा किया तो कहा की रास्ते में जो भी मिले उसके पांव लगना और जो कोई सुहाग का आशीष दे तो उसके पल्ले में गाँठ लगाकर उसे कुछ रूपये देना|बहन जब भाइयों से विदा हुई तो रास्ते में जो भी मिला उसने यही आशीष दिया की तुम सात भाइयो की बहन तुम्हारे भाई सुखी रहें और तुम उनका सुख देखो|
सुहाग का आशीष किसी ने भी नही दिया | जब वह ससुराल पहुँची तो दरवाजे पर उसकी छोटी नन्द खड़ी थी, वह उसके भी पाव लगी तो उसने कहा की सुहागिन रहो ,सपूती होओं उसने यह सुनकर पल्ले में गाठ बांधी और नन्द को सोने का सिक्का दिया|तब भीतर गई तो सास ने कहा कि पति धरती पर पड़ा है,तो वह उसके पास जाकर उसकी सेवा करने के लिए बैठ गई |
बाद में सास ने दासी के हाथ बची – कुची रोटी भेज दी इस प्रकार से समय बीतते – बीतते मार्गशीष की चौथ आई तो चौथ माता बोली –करवा ले, करवा ले ,भाईयो की प्यारी बहन करवा ले | लेकिन जब उसे चौथ माता नही दिखलाई दी तो वह बोली हे माता ! आपने मुझे उजाड़ा है तो आप ही मेरा उध्दार करोगी | आपको मेरा सुहाग देना होगा | तब उस चौथ माता ने बताया की पौष की चौथ आएगी, वह मेरे से बड़ी है उसे ही सब कहना | वही तुम्हरा सुहाग वापस देगी | पौष की चौथ आकर चली गई , फाल्गुन की चली गई, चैत्र ,वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, भादों की सभी चौथ आयी और यही कहकर चली गई की आगे वाली को कहना |असौज की चौथ आई तो उसने बताया की तुम पर कार्तिक की चौथ नाराज है, उसी ने तुम्हरा सुहाग लिया है ,वही वापस कर सकती है ,वही आएगी तो पाव पकड़ कर विनती करना | यह बताकर वह भी चली गई |
जब कार्तिक की चौथ आई तो वह गुस्से में बोली –भाइयों की प्यारी करवा ले ,दिन में चाँद उगानी करवा ले, व्रत खंडन करने वाली करवा ले, भूखी करवा ले, तो यह सुनकर वह चौथ माता को देख कर उसके पांव पकड़कर गिडगिडाने लगी | हे चौथ माता !मेरा सुहाग तुम्हारे हाथो में है – आप ही मुझे सुहागिन करे | तो माता बोली –पापिन ,हत्यारिन मेरे पांव पकड़कर क्यों बैठ गई |तब वह बोली की जो मुझसे भूल हुई उसे क्षमा कर दो, अब भूल नहीं करुगी, तो चौथ माता ने प्रसन्न होकर आखो का काजल,नाखूनों में से मेहदी और टीके में से रोली लेकर छोटी उंगली से उसके आदमी पर छीटा दिया तो वह उठकर बैठ गया और बोला की आज मै बहुत सोया |
वह बोली – क्या सोये,मुझे तो बारह महीने हो गये, अब जाकर चौथ माता ने मेरा सुहाग लौटाया |तब उसने कहा की जल्दी से माता का पूजन करो| जब चौथ की कहानी सुनी, करवा का पूजन किया तो प्रसाद खाकर दोनों पति –पत्नी चौपड़ खेलने बैठ गये |नीचे से दासी आयी, उसने दोनों को चौपड़ पांसे से खेलते देखा तो उसने सासु जी को जाकर बताया |तब से सारे गांव में यह बात प्रसिद्ध हो गई की सब स्त्रींया चौथ का व्रत करे तो सुहाग अटल रहेगा |
जिस प्रकार से साहूकार की बेटी का सुहाग दिया उसी प्रकार से चौथ माता सबको सुहागिन रखना | यही करवा चौथ के उपवास की सनातन महिमा है |