मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

हनुमानजी की विशेषताएं और मैनेजमेंट के टिप्स


रामभक्त और रुद्रावतार हनुमानजी सबसे बुद्धिमान, नीतिज्ञ और गुणी जाते हैं। हनुमान जी के धर्म पिता वायु थे, इसी कारण उन्हे पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। बचपन से ही दिव्य होने के साथ साथ उनके अन्दर असीमित शक्तियों का भण्डार था। हनुमान सूरज को फल मानते हुए पकड़ने के लिए आगे बढ़ते हैं। इनके जन्म के पश्चात् एक दिन वे उदय होते हुए सूर्य को फल समझकर उसे खाने के लिए उसकी ओर जाने लगे थे। अपने गुणों के बल पर उन्होंने भगवान राम का भरोसा जीता था और कई बार कठिन कार्यों को सफलता पूर्वक अंजाम दिया था, उनके व्यक्तित्व में कई ऐसे गुण थे, जो आज भी प्रबंधन कला का सूत्र हैं। हनुमानजी की विशेषताएं जिनमें मैनेजमेंट के टिप्स छिपे हैं और हम सीख सकते हैं।

१. लगातार सीखते रहिए अपडेट रहना जरूरी

हनुमानजी लगनशील थे और हमेशा सीखने के लिए तैयार रहते थे। बचपन से अंत तक उन्होंने सभी से कुछ न कुछ सीखा था। मान्यता है कि उन्हें सभी देवताओं से कुछ न कुछ प्राप्त हुआ था। माता अंजना से पिता केसरी और धर्मपिता पवन देव से भी उन्होंने शिक्षा ग्रहण की थी। कहा जाता है उन्होंने ऋषि मतंग और भगवान सूर्य देव से भी विद्या ग्रहण थी। इस तरह आज के जमाने में हम नित बदल रही टेक्नोलॉजी को सीख खर खुद को अपडेट कर सकते हैं और हमेशा स्वयं को प्रासंगिक बनाए रख सकते हैं।

२. सफलता के लिए प्लानिंग के साथ हो काम

रुद्रावतार हनुमानजी कुशल योजनाकार, कुशाग्र और दूरदर्शी थे। बालि से सताए सुग्रीव जंगल में छिपकर जीवन बिता रहे थे, इस बीच जब जंगल में हनुमानजी भगवान राम और लक्ष्मण से मिले तो उन्होंने भविष्य को भांप लिया और दोनों की मित्रता कराई, जिससे दोनों को लाभ हुआ। हनुमानजी जो भी काम करते थे तन्मयता से करते थे। हनुमानजी ने सेना से लेकर समुद्र को पार करने तक जो कार्य कुशलता और बुद्धि परिचय दिया, वह प्रबंधन के गुणों को दर्शाता है। हमें भी मुश्किल समय में धैर्य बनाए रखना चाहिए। बुद्धि का उपयोग करते हुए बड़ी-बड़ी समस्याएं खत्म की जा सकती हैं।

3. कम्युनिकेशन स्किल और डिप्लोमेसी

हनुमानजी अच्छे नेतृत्वकर्ता थे, उनकी कम्युनिकेशन स्किल अच्छी थी। उनमें कुशल राजनय के सभी गुण थे। इसलिए जब सीता का पता लगाने के लिए अनजान प्रदेश में किसी को भेजने की बात आई तो बजरंगबली को चुना गया। वहां न सिर्फ उन्होंने सीता का पता लगाया, आगे बढ़कर कम्युनिकेशन स्किल और डिप्लोमेसी के बल पर सीताजी को आश्वश्त किया और लंका में राम की सेना का खौफ भर दिया। हनुमानजी कठिनाइयों में निर्भय होकर सहायक की तरह लक्ष्य प्राप्ति के लिए उनमें उत्साह और जोश भर देते थे। इसी के साथ धैर्य और लगन के साथ कठिनाइयों पर विजय पाने, परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर लेने की क्षमता, सबकी सलाह सुनने का गुण उनमें थे, जो हर लीडर में होना चाहिए। उन्होंने जामवंत से मार्गदर्शन लिया और उत्साह पूर्वक रामकाज किया। साथियों को सम्मानित करना, सक्रिय रहकर कार्य में निरंतरता बनाए रखने की क्षमता सभी कार्यों को सिद्ध करने का मूलमंत्र है।

3. न कोई छोटा ना कोई बड़ा, हर कोई है महत्वपूर्ण

हनुमानजी किसी भी काम को छोटा बड़ा नहीं समझते थे और जो भी काम उन्हें सौंपा जाता था, सही योजना के साथ उसका कार्यान्वयन करते थे। उदाहरण के लिए भगवान श्रीराम ने लंका भेजते उनसे कहा था कि यह अंगूठी श्री सीता को दिखाकर कहना की राम जल्द ही आएंगे लेकिन हनुमानजी ने सही योजना बनाकर समुद्र की बाधाओं को पार किया। उन्होंने रावण को राम का संदेश भी दिया। इस दौरान उन्होंने अपने काम में मदद के लिए विभीषण को ढूंढ़ा और राम के पक्ष में ले आए।

4. नीति कुशल, सही गलत पर निर्णय क्षमता अनिवार्य

हनुमानजी नीति कुशल, निडर और सही के साथ खड़े रहने वाले थे। वो कड़वी बात भी ऐसी सहजता से कहते थे कि लोग बुरा नहीं मानते थे। राजकोष और स्त्री प्राप्त करने के बाद सुग्रीव भगवान श्रीराम से सीता को लाने के वादे को भूल गए थे लेकिन हनुमानजी ने उन्हें साम, दाम, दण्ड, भेद नीति समझाकर मैत्रीधर्म की याद दिलाया और कर्तव्य निभाने के लिए राजी किया। 

5. परिस्थितियों के अनुसार खुद को बदलना

हनुमानजी अदम्य साहसी थे और विपरीत परिस्थितियों से विचलित नहीं होते थे। रावण को सीख देते समय उनकी निर्भीकता, दृढ़ता, स्पष्टता और निश्चिंतता अप्रतिम है। विशाल सागर को पार करने में उन्होंने अधिक देर नहीं लगाई। हनुमानजी के चेहरे पर कभी चिंता, निराशा या शोक नहीं देख सकते। वह हर हाल में मस्त रहते हैं। हनुमानजी ने सभी काम उत्सव और खेल की तरह लिया। जब समुद्र में रामनाम लिखा पत्थर डालना था तो हनुमानजी भी इस काम में जुट गए और इस समय उनमें उत्साह देखते ही बनता था। इससे पहले लंका में अशोक वाटिका के फल खाते वक्त भी मस्ती की। 

6. विरोधियों को पहचानने की कला

जीवन में सफलता के लिए प्रतिस्पर्धियों पर नजर रखना एक अनिवार्य गुण है। हनुमानजी किसी भी परिस्थिति में हों, भजन कर रहे हों या आसमान में उड़ रहे हों या फल फूल खा रहे हों, उनकी नजर अपने विरोधियों पर जरूर रहती थी। अशोक वाटिका में मेघनाद और उसके सैनिकों के आने से पहले ही वो सतर्क हो गए थे। विरोधी के असावधान रहते ही उसके रहस्य को जान लेना शत्रुओं के बीच दोस्त खोज लेने की दक्षता विभीषण प्रसंग में दिखाई देती है। उनके हर कार्य में थिंक और एक्ट का अद्भुत कॉम्बिनेशन है।

7. व्यक्तित्व में हो विनम्रता

हनुमानजी शक्तिशाली थे पर विनम्र भी थी, इसलिए लोग उनसे खुश रहते थे। लंका में जब उन्होंने अशोक वाटिका को उजाड़ा हो या शनिदेव का घमंड चूर किया हो उनकी विनम्रता का स्तर बहुत ऊंचा था। यदि आप टीमवर्क कर रहे हैं या नहीं कर रहे हैं फिर भी एक प्रबंधक का विनम्र होना जरूरी है।

रामभक्त हनुमान के जीवन चरित्र के बहुत सीखने को मिलता है। उनकी शिक्षाओं को जीवन में अपनाकर सफलता को हासिल किया जा सकता है। जैसे : 1. अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहें। 2. उदार व्यक्तित्व का निर्माण करें। 3. जिज्ञासु मन से ज्ञान हासिल करें। 4. समर्पित भाव से स्वामी के प्रति निष्ठा रखें। 5. लक्ष्य प्राप्ति तक आराम नहीं करें।


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