रविवार, 29 मार्च 2015

फटा छप्पर, हिली ज़मीन


ऊपर वाला जब भी देता, देता छप्पर फाड़ कर. जितनी यह बात सच है, उतनी ही यह बात भी सच है कि जरूरत से ज्यादा मिलने पर या खाने पर हाजमा खराब हो जाता है. यह दोनों बातें आम आदमी पार्टी पर सटीक बैठती है. दिल्ली इलेक्शन में जरूरत से ज्यादा बहुमत मिलते ही पार्टी के कर्ताधर्ताओं की महत्वकांक्षाएं हिलोरे मारने लगी. हिलोरे भी ऐसे की पार्टी की जमीन ही हिला कर रख दी. जनसेवक बनने का दावा करने वाले अचानक इतने खास हो गए कि आम आदमी खुद को ठगा सा महसूस करने लगा. लोगों को स्टिंग ऑपरेशन की तकनीक सिखाने वाले खुद स्टिंग का शिकार हो गए. बात-बात पर कांग्रेस और भाजपा से अलग और बेहतर होने की बात करने वाले तो उनसे भी गए गुजरे निकले. आम आदमी पार्टी के संयोजक बीजेपी और कांग्रेस पर आरोप लगाने से पहले इन पार्टियों के नेताओं की जीवनी के कुछ पन्ने पलट कर देख लेते तो शायद अच्छा कर सकते थे. जहां एक ओर भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति से संन्यास ले लिया तो बस ले लिया, यहां तक उनको सम्मानित करने भारत के राष्ट्रपति को खुद चलकर उनके घर जाना पड़ा. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी भारत के प्रधानमंत्री का पद ठुकरा कर खुद को त्याग की मूर्ति के तौर पर पेश कर चुकी है. हां इन बातों में वजह कुछ भी हो, पर आखिर सच्चाई तो यही है. सरकार चलाना यूं भी हंसी-मजाक का खेल नहीं है, इसके लिए जो दम और खम चाहिए वह आम आदमी में कहां. देख लिया न आप का हाल. पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए मरे जा रहे थे और अब एक-दूसरे को मारे जा रहे है. आप संयोजक अरविंद केजरीवाल योगेंद्र यादव को पार्टी से बाहर करने पर अमादा है. विचार पार्टी की जान होते है, अगर विचार ही उससे अलग हो जाएं तो पार्टी में बचेगा ही क्या. यूं भी योगेंद्र ने क्या गलत कह दिया, वहीं तो कहा है जो आप का हर सदस्य कहता फिरता है. ऊपर वाले की कृपा के चलते आप का छप्पर फट गया था. इस समय आप को अपने फटे छप्पर को ठीक करते हुए दिल्लीवासियों के साथ-साथ देश का दिल जीतने के लिए तन-मन से जनसेवा में जुट जाना चाहिए था. लेकिन समय का फेर कहिए या महत्वाकांक्षाओं का ज्वालामुखी, जिसके फटते ही आप की जमीन ही फट गई, अब करते रहिए डेमेज कंट्रोल. मुश्किल से अरविंद केजरीवाल पर दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का दाग धुला था. लेकिन वह फिर नासमझी कर गए. इस प्रकरण ने नई राजनीतिक पार्टियों के गठन की संभावनाओं पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है.