सोमवार, 27 दिसंबर 2021

पलायन और सड़क

सडक, मेरे मोहल्ले के नुक्कड से जाती है न जाने कहां तक. सडक होती है जहां, खिलखिलाती है जिंदगी वहां और तडपती-बिलखती है वहां जहां नहीं होती है सडक. सडक ही तय करती है हम कहां तक जाएगे. अमूमन जहां सडक नहीं होती वहां कोई नहीं आता- जाता. जब तक जाना- आना होता है तब तक जिंदगी दम तोड देती है. पूर्वजों की झोपडियों को गांव, गांव कस्बे और कस्बों को शहर में बदलने वाली सडक पर ही बन रही है मेट्रो सिटी. जहां सडक नहीं होती वहां से पलायन हो जाता है. जब सडक लाने वाले नेता जी भी शहर में आशियाना बना लेते हो, तब गांव में पलायन कैसे रूकेगा. न पढाने- लिखाने को मास्साब और न दवा-दारू देने डाक्टर बाबू तब गांव में पैतृक भूमि का अचार डालने लायक पैसा कमाने को शहर जाना जरूरी होता है. लेकिन सडक होती नहीं और कंधे जवाबहीन हो जाते है, नेताजी को ढोते- ढोते. नतीजन जिंदगी दम तोड देती है. पृथ्वी से आकाश की उडान में भूख से दम निकल जाता है, तब भी जो बच्चे खुशी से चिल्लाते है वो मेट्रो सिटी में नहीं गांव की पगडंडियों पर ही नजर आते है. मजेदार बात यह है कि सरकार गांव वाले ही बनाते है. शहर फास्ट लाइफ स्टाइल में वोटिंग लाइन में खडे होने वक्त ही नहीं होता है. गांवों से बनी सरकार जब मेट्रो सिटी प्लान करती है तभी से गांव से पलायन की नींव पडनी शुरू होती है. गांव को चाहिए क्या, एक सडक- मतलब एक ढंग की सडक.

सोमवार, 13 दिसंबर 2021

मौसम

सर्दी में धूप का
गर्मी में बारिश का करता जो इंतजार.
वो है मेहनतकश
निकलना है घर से
क्योंकि भरना है पेट
बाकी तो एसी में
ठंडा क्या गरम
एसी कहां प्रकृति
किसका मौसम
किसकी मस्ती.
पचा लेता है सब
क्योंकि ये पेट है,
कोई मौसम नहीं.
पेट तो पेट वो भी पापी.
-हरीश भट्ट

मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

पीएम मोदी की कविता



प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के भाषण में वो आकर्षण है, जो हर किसी को मंत्रमुग्‍ध कर देता हैं। देहरादून के परेड ग्राउंड में पीएम मोदी के संबोधन में भी यह जादू देखने को मिला। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने जहां अपने भाषण की शुरुआत गढ़वाली बोली से की, वहीं अंत कविता की कुछ पंक्तियों से किया.

जहां पवन बहे संकल्प लिए,

जहां पर्वत गर्व सिखाते हैं,

जहां ऊंचे नीचे सब रस्ते

बस भक्ति के सुर में गाते हैं

उस देवभूमि के ध्यान से ही

उस देवभूमि के ध्यान से ही

मैं सदा धन्य हो जाता हूं

है भाग्य मेरा, सौभाग्य मेरा,

मैं तुमको शीश नवाता हूं, 

मैं तुमको शीश नवाता हूं

और धन्‍य-धन्‍य हो जाता हूं।

तूम आंचल हो भारत मां का,

जीवन की धूप में छांव हो तुम,

बस छूने से ही तर जाए,

सबसे पवित्र, वो धरा हो तुम

बस लिए समर्पण तन-मन से

बस लिए समर्पण तन-मन से

मैं देवभूमि में आता हूं,

मैं देवभूमि में आता हूं

हे भाग्‍य मेरा, सौभाग्‍य मेरा

मैं तुमको शीश नवाता हूं।

मैं तुमको शीश नवाता हूं।

और धन्‍य-धन्‍य हो जाता हूं

जहां अंजुली में गंगा जल हो

जहां हर एक मन बस निश्छल हो

जहां गांव-गांव में देश भक्त

जहां नारी में सच्चा बल हो

उस देवभूमि का आशीर्वाद लिए

मैं चलता जाता हूँ।

उस देवभूमि का आशीर्वाद

मैं चलता जाता हूं,

है भाग्य मेरा, सौभाग्य मेरा

मैं तुमको शीश नवाता हूं।

मंडवे की रोटी

हुड़के की थाप

हर एक मन करता

शिवजी का जाप

ऋ षि मुनियों की है

ये तपो भूमि

कितने वीरों की ये जन्मभूमि

मैं देवभूमि आता हूं

मैं तुमको शीश नवाता हूं

और धन्य धन्य हो जाता हूं

मैं तुमको शीश नवाता हूं

और धन्य धन्य हो जाता हूं।