गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

चुनिए उसे, जो हो साथ आपके

आर्थिक मदद और विकास की बात छोड़िए आप चुनिए उसको जिससे आप अपने जीवन संघर्ष में उम्मीडद कर सकते हैं कि वह आपके साथ होगा. यूं भी जब लड़ना खुद ही है तो फिर उसका साथ क्यों देना जो सहानुभूति तो दूर तमीज से आंख भी ना दिखा सके. चुनिए उसे जो आपके गली-मोहल्ले से होकर गुजरता हो. चुनिए उसे जिसको देखा हो आपने कंधे पर स्कूल का बैग लटकाए. देखा हो जिसको शहर की सड़कों पर आपके लिए संघर्ष करते हुए. वह जितना मजबूत होगा उतनी ही दृढ़ता के साथ आप कह सकेंगे यह तो वही है जिसका बचपन हमने देखा है. सोचिए सिर्फ आपकी एक सहमति उस नन्हे बच्चे को एक परिपक्व युवा बनाते हुए लोकतंत्र के मंदिर में आपके लिए ही कुछ कर गुजरने के लिए भेज सकती है. यह सच मानिए कि गाहे-बगाहे आप ही कहेंगे कि अरे यह तो वही है जिसको हम बचपन से जानते हैं. सोचिए जो दुख की घड़ी में आपके साथ खड़ा होता हो तो वही युवा बेघर होने के कगार पर पहुंची जनता की आवाज भी बनता हो. चुनिए उसको जो जीते या हारे रहेगा आपके आसपास ही. उसको नहीं जिससे मिलना तो दूर, दर्शन भी आसमान से तारे तोड़ने जैसा असंभव हो. दूसरों के कंधे पर चढ़कर जीत का जश्न मनाने से अच्छा है खुद के पैरों पर फुदकना. क्योंकि दूसरे के घुटनों पर आते ही आपका गिरना तय है. फैसले का वक्त आ चुका है आप अपने संघर्ष को 5 साल का एक्सटेंशन देना चाहते हैं, तो कोई दिक्कत नहीं. नहीं तो कीजिए उस युवा का समर्थन जिसकी उम्मीद केवल आपके एक फैसले पर टिकी है. याद कीजिए पिछले कई सालों में आपने क्या-क्या नहीं सहा होगा. वक्त गुजरने के साथ-साथ तो सब मैनेज हो जाता है. बात तो सिर्फ उस दुख भरे वक्त की होती है और उस पर भी जब कोई आपके जख्म पर नमक छिड़क दें. अगर परिवर्तन सृष्टि का नियम है तो फौलादी इरादों के सामने चट्टान भी धराशाई हो जाती है. फिर यह तो एक बटन दबाने की बात है. यह बटन ही तय करेगा कि आखिर आप चाहते क्या हैं? लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार तो बनेगी, लेकिन आप का विधायक आपके साथ होगा या आप से अलग. यह आपको निर्णय लेना है.