शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों

 

अलविदा मनोज कुमार ( जुलाई 1937- 04 अप्रैल 2025)

हिंदी सिनेमा में ‘भारत कुमार’ के नाम से मशहूर अभिनेता मनोज कुमार का 87 साल की उम्र में निधन हो गया है. लंबी बीमारी से जूझने के बाद उन्होंने कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में अंतिम सांस ली. 

कभी हरिकिशन से ख़ुद को उन्होंने मनोज कुमार बनाया था, लेकिन जनता ने मनोज कुमार को भारत कुमार बना दिया और ताउम्र मनोज कुमार पर भारत कुमार की ही छवि हावी रही. कई तरह के रोल करने के बावजूद मनोज कुमार देशभक्ति से भरे भारत कुमार की छवि में कैद हो कर रह गए थे.

मनोज कुमार के बारे में एक किस्सा मशहूर है जिसका जिक्र वो कई इंटरव्यू में करते रहे हैं. एक बार वो रेस्तरां में आराम से सिगरेट सुलगा रहे थे. इतने में एक लड़की बहुत ग़ुस्से में आई और कहा कि भारत होते हुए सिगरेट पीते हो ?

उनकी फिल्मों के गाने आज भी लोगों के दिलों में जोश और गर्व की भावना भर देते हैं.फिल्म उपकार का गाना मेरे देश की धरती सोना उगले आज भी खेतों में गूंजता है. यह गीत किसानों और जवानों के सम्मान का प्रतीक बना. फिल्म पूरब और पश्चिम का है प्रीत जहां की रीत सदा दुनिया भर में भारत महानता का बखान करता है.

मनोज कुमार की फिल्मों से जुड़े 10 देशभक्ति गाने यह हैः

1- है प्रीत जहां की रीत सदा (पूरब और पश्चिम) 

2- मेरा रंग दे बंसती चोला (शहीद)

3- ऐ वतन ऐ वतन (शहीद) 

4- दिल दिया है जान भी देंगे (कर्मा)

5- जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़ियाा करती हैं बसेरा (सिकंदर-ए-आज़म)

6- अब के बरस तुझे धरती की रानी कर देंगे (क्रांति)

7- इंसाफ की डगर पे (गंगा जमुना)

8- कर चले हम फिदा (हकीकत)

9- दुल्हन चली  (पूरब और पश्चिम)

10- जिंदगी की ना टूटे लड़ी (क्रांति)

मनोज कुमार की खासियत थी कि सादगी से गहरी बात कह जाना. वह भले ही अभिनेता थे लेकिन उनके किरदार आम आदमी की पीड़ा, संघर्ष और उम्मीद को दर्शाते थे. पद्मा श्री और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित मनोज कुमार को पूरब और पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान, क्रांति जैसी फिल्मों की बदौलत भारत कुमार के  नाम से भी जाना जाने लगा. 


मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

एक देश-एक चुनावः खर्च कम विकास ज्यादा

स्वतंत्रता के बाद से अब तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के 400 से अधिक चुनावों ने निष्पक्षता और पारदर्शिता के प्रति भारत के चुनाव आयोग की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया है। एक राष्ट्र, एक चुनाव के इस विचार को एक साथ चुनाव के रूप में भी जाना जाता है, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक ही साथ कराने का प्रस्ताव प्रस्तुत करता है। इससे मतदाता अपने निर्वाचन क्षेत्रों में एक ही दिन सरकार के दोनों स्तरों के लिए अपने मत डाल सकेंगे, हालाँकि देश भर में मतदान कई चरणों में कराया सकता है। भारत में एक साथ चुनाव कराने के संबंध में उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट को 2024 में जारी किया गया था। रिपोर्ट ने एक साथ चुनाव के दृष्टिकोण को लागू करने के लिए एक व्यापक रूपरेखा प्रदान की। इसकी सिफारिशों को 18 सितंबर 2024 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकार किया गया, जो चुनाव सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। 

एक देश-एक चुनाव की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

एक साथ चुनाव कराने की अवधारणा भारत में नई नहीं है। संविधान को अंगीकार किए जाने के बाद, 1951 से 1967 तक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए गए थे। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के पहले आम चुनाव 1951-52 में एक साथ आयोजित किए गए थे। यह परंपरा इसके बाद 1957, 1962 और 1967 के तीन आम चुनावों के लिए भी जारी रही। हालांकि, कुछ राज्य विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण 1968 और 1969 में एक साथ चुनाव कराने में बाधा आई थी। चौथी लोकसभा भी 1970 में समय से पहले भंग कर दी गई थी, फिर 1971 में नए चुनाव हुए। पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा ने पांच वर्षों का अपना कार्यकाल पूरा किया। जबकि, आपातकाल की घोषणा के कारण पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल अनुच्छेद 352 के तहत 1977 तक बढ़ा दिया गया था। इसके बाद कुछ ही, केवल आठवीं, दसवीं, चौदहवीं और पंद्रहवीं लोकसभाएं अपना पांच वर्षों का पूर्ण कार्यकाल पूरा कर सकीं। जबकि छठी, सातवीं, नौवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं और तेरहवीं सहित अन्य लोकसभाओं को समय से पहले भंग कर दिया गया।

एक साथ चुनाव कराने के संबंध में उच्च स्तरीय समिति

भारत सरकार ने 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक साथ चुनाव कराने पर उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था। इसका प्राथमिक उद्देश्य यह पता लगाना था कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराना कितना उचित होगा। समिति ने इस मुद्दे पर व्यापक स्तर पर सार्वजनिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं मांगीं और इस प्रस्तावित चुनावी सुधार से जुड़े संभावित लाभों और इसकी चुनौतियों का विश्लेषण करने के लिए विशेषज्ञों से परामर्श किया। यह रिपोर्ट समिति के निष्कर्षों, संवैधानिक संशोधनों के लिए इसकी सिफारिशों और शासन, संसाधनों तथा जन-मानस पर एक साथ चुनाव के अपेक्षित प्रभाव का विस्तृत अवलोकन प्रस्तुत करती है।

एक साथ चुनाव के संबंध में मुख्य निष्कर्षः

१. जनता की प्रतिक्रियाः समिति को 21,500 से अधिक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं, जिनमें से 80 प्रतिशत एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में थीं। सबसे अधिक प्रतिक्रियाएं तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, गुजरात और उत्तर प्रदेश से प्राप्त हुईं।

२. राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएंः 32 दलों ने संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग और सामाजिक सद्भाव जैसे लाभों का हवाला देते हुए एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया। 15 दलों ने संभावित लोकतंत्र विरोधी प्रभावों और क्षेत्रीय दलों के हाशिए पर जाने से जुड़ी चिंताएं व्यक्त कीं।

३. विशेषज्ञ परामर्शः समिति ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, पूर्व चुनाव आयुक्तों और विधि विशेषज्ञों से परामर्श किया। इनमें से अधिकाधिक लोगों ने एक साथ चुनाव कराने की अवधारणा का समर्थन किया।

४. आर्थिक प्रभावः सीआईआई, फिक्की और एसोचैम जैसे व्यापारिक संगठनों ने प्रस्ताव का समर्थन किया। उन्होंने बार-बार चुनाव से जुड़ी समस्याओं और खर्च में कमी लाकर आर्थिक स्थिरता पर इसके सकारात्मक प्रभाव को उजागर किया।

५. कानूनी और संवैधानिक विश्लेषणः समिति ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 82ए और 324ए में संशोधन का प्रस्ताव रखा है, ताकि लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराए जा सकें।

६. बार-बार चुनाव के बारे में जन-भावनाः जनता की प्रतिक्रियाओं से बार-बार चुनाव के नकारात्मक प्रभावों, जैसे मतदाताओं में थकावट और शासन में व्यवधान, के बारे में उनकी महत्वपूर्ण चिंताओं का संकेत मिला। एक साथ चुनाव होने से इनमें कमी आने की उम्मीद है।

७. शासन में निरंतरता को बढ़ावाः एक साथ चुनाव कराने से सरकार का ध्यान विकासात्मक गतिविधियों और जन कल्याण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से नीतियों के कार्यान्वयन पर केंद्रित होगा।

८. नीतिगत निर्णय लेने में देर नहीं होगीः एक साथ चुनाव कराने से आचार संहिता के लंबे समय तक लागू होने की संभावना कम होगी, जिससे नीतिगत निर्णय लेने में देर नहीं होगी और शासन में निरंतरता संभव होगी।

९. संसाधनों को कहीं और इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगाः  एक साथ चुनाव आयोजित होने से, बार-बार तैनाती की आवश्यकता कम हो जाएगी, जिससे सरकारी अधिकारी और सरकारी संस्थाएं चुनाव-संबंधी कार्यों के बजाय अपनी प्राथमिक भूमिकाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।

१०. क्षेत्रीय दलों की प्रासंगिकता बनी रहेगीः यह व्यवस्था एक ऐसा राजनीतिक माहौल बनाती है जिसमें स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय चुनाव अभियानों से प्रभावित नहीं होते, इस प्रकार क्षेत्रीय मुद्दों को उठाने वालों की प्रासंगिकता बनी रहती है।

११. राजनीतिक अवसरों में वृद्धिः एक साथ चुनाव के परिदृश्य में, विभिन्न दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बीच विविधता और समावेशिता की अधिक गुंजाइश होती है, जिससे नेताओं की एक विस्तृत श्रृंखला उभर कर सामने आती है जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अहम योगदान देती है।

१२. शासन पर ध्यानः  एक साथ चुनाव पार्टियों को मतदाताओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अपने प्रयासों को समर्पित करने की अनुमति देते हैं, जिससे संघर्ष और आक्रामक प्रचार की घटनाओं में कमी आती है।

१३. वित्तीय बोझ में कमीः एक साथ चुनाव कराने से कई चुनाव चक्रों से जुड़े वित्तीय खर्च में काफी कमी आ सकती है। यह मॉडल प्रत्येक व्यक्तिगत चुनाव के लिए मानव-शक्ति, उपकरणों और सुरक्षा संबंधी संसाधनों की तैनाती से संबंधित व्यय को घटाता है। 

कुशल और स्थिर चुनावी माहौल का मार्ग प्रशस्त

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक साथ चुनाव कराने के संबंध में गठित उच्च स्तरीय समिति ने भारत की चुनावी प्रक्रिया में एक क्रांतिकारी बदलाव की नींव रखी है। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव चक्रों को एक साथ रखकर, समिति की सिफारिशें लगातार चुनावों से जुड़ी शासन में व्यवधान और संसाधनों की बर्बादी जैसी दीर्घकालिक चुनौतियों को दूर करने का आश्वासन देती हैं। संवैधानिक संशोधनों के साथ-साथ एक साथ चुनाव लागू करने के लिए प्रस्तावित चरणबद्ध दृष्टिकोण भारत में अधिक कुशल और स्थिर चुनावी माहौल का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। व्यापक सार्वजनिक और राजनीतिक समर्थन के साथ, एक साथ चुनाव की अवधारणा भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और शासन की दक्षता को बढ़ाने के लिए तैयार है।