शनिवार, 27 अप्रैल 2019

‘एक हादसा जिंदगी का मकसद बदल देता है’


‘एक हादसा जिंदगी का मकसद बदल देता है’ अब तक पढ़ा या सुना ही था। मैं खुद एक ऐसी शख्सियत से रूबरू हो चुका हूं, जिनकी जीवन यात्रा में हुए एक हादसे ने उनकी जिंदगी के मायने बदल कर उनको पर्वतारोही बना दिया। जिनके पैरों में इतनी जान तक नहीं थी, वह ठीक से जमीन पर खड़े हो सके। आज बर्फीले व दुर्गम रास्तों पर चलते हुए पर्वतों की चोटियों को फतह कर रहे है। उनका नाम है बाबा मॉनिंद्र पॉल। 1954 में पं. बंगाल में पैदा हुए बाबा पॉल ने 1964 में एक ट्रेन हादसे में अपना दाया पैर गंवा दिया था। फिर वही हुआ जो अब तक सिर्फ सुना ही था, कि ‘एक हादसा जिंदगी का मकसद बदल देता है’। बाबा की जिंदगी का मकसद भी बदल गया। अब उनकी जिंदगी बैसाखियों पर आ थमी थी। उन्होंने 1964 में रांची में श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र की शरण में संन्यास लेकर हिमालय के लिए पैदल यात्रा शुरू कर दी। 1981 में बाबा पॉल ने ऋषिकेश से चाइना बार्डर के करीब नीति माणा घाटी की ट्रैकिंग 72 दिन में पूरी की। इस सफर में मनींद्र पॉल को हिमालय के नैसर्गिक सौंदर्य ने इस कदर आकर्षित किया कि वह अब तक खराब मौसम और बर्फीले तूफानों के लिए प्रसिद्ध कैलाश मानसरोवर यात्रा चार बार 1987, 90 , 95 और 98 में पूरी कर चुके है। बाबा पॉल ने हिमाचल के मनाली इंस्टीट्‌यूट ऑफ माउंटनेरिंग इंस्टीट्‌यूट से 1987 में छह महीने के बेसिक कोर्स के बाद एडवांस माउंटनेरिंग कोर्स पूरा किया। इसके बाद एक साल बाद ही उन्होंने कोलकाता माउंटनेरिंग क्लब की टीम के साथ 5858 मीटर की एम-10 पीक फतह कर डाली। इससे पहले वह 6000 मीटर ऊंचाई पर एवरेस्ट बेस कैंप तक भी पहुंच चुके थे, लेकिन किसी कारणवश वह आगे नहीं बढ़ पाए थे, तभी उनको ट्रेनिंग की जरूरत महसूस हुई। 1994 में 24,130 फीट की माउंट अभिगामिनी भी मनींद्र पॉल के कदमों को नहीं रोक पायी। विश्व की सबसे टेक्निकल पीक मानी जाने वाली माउंट कॉमेट ने बाबा पॉल को 25200 फीट पर वापस लौटने को मजबूर कर दिया। पर बाबा ने हिम्मत नहीं हारी है, कहते है कि मन के जीते, जीत और अभी बाबा के मन ने हार नहीं मानी है, इसलिए वह अब अपै्रल 2011 में एक बार फिर माउंट कॉमेट को फतह करने के मिशन पर है। जिंदगी से हार मान बैठे इंसानों के लिए मिसाल बन चुके बाबा के इन जज्बों को लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉडर्स में 1999 में ही दर्ज किया जा चुका है। 1997 में यूथ अफेयर और स्पोट्‌र्स मिनिस्ट्री अवार्ड के अलावा अदम्य साहस अवार्ड और लोक रत्न प्राइज से भी सम्मानित हो चुके है। माउंट एवरेस्ट फतह करने की ख्वाहिश रखने वाले बाबा पॉल का कहना है कि जिंदगी ईश्वर की अनमोल देन है, हमको इसे यूं ही नहीं गंवाना चाहिए। यह जरूरी नहीं है कि जिंदगी हर बार आपको निराश करे, हां ऐसा हो सकता है कि आपको लगे कि अब जिंदगी खत्म होने के कगार पर है, चारों ओर अंधेरा सा छाया जाए, पर आपको हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, क्योंकि अंधेरे को चीर कर उम्मीद की किरणे हमारी जिंदगी को रोशन करने वाली है, बस इसके लिए बहुत थोडे़ समय का इंतजार करना होता है। पर अपने कदमों को कभी नहीं रोकना चाहिए, हर कदम पर आपको कुछ न कुछ सीखने को मिलता है, और इनसे सबक लेते हुए अपनी मंजिल पर पहुंचा जा सकता है। मौत को नजदीक से महसूस करने वाले बाबा पॉल बताते है कि एक बार मुझे 1984 में कैलाश पर ट्रैकिंग के दौरान खून जमा देने वाली ठंड में मानसरोवर झील के किनारे पूरी रात गुजारनी पडी। वो भी सिर्फ दो कंबल में। मेरे पास खाने को कुछ भी नहीं था। रात में तापमान गिरने पर शरीर को गर्म रखने के लिए मैं कुंभक योगा करता रहा। और किसी तरह वह काली रात गुजार दी। दिन निकला और मैंने 12 किमी दूर जाकर जब चाय पी तो अपने को तरोताजा पाया। ऐसे ही एक बार 1985 में माउंट एवरेस्ट बेस कैंप पर भी अचानक मौसम खराब होने पर मामूली कपडों में कई दिन गुजारने पडे। बाबा मनींद्र पॉल विश्व के लाखों विकलांगों व जिंदगी से हार मान चुके इंसानों के लिए उम्मीद जगाते है। हो चाहे जितनी भी मुश्किल जीवन डगर, मत हार हौसला मुसाफिर, कदम-कदम बढाए जा, मंजिल खुद ही पास आ जाएगी।

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