शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

उच्चारण दोष से हृषीकेश बना ऋषिकेश



ऋषिकेश हिमालय की पर्वत श्रृंखला में मणिकूट पर्वत की तलहटी में गंगा तट पर बसा एक प्राचीन नगर है. ऋषिकेश उच्चारण दोष के चलते हृषीकेश का परिवर्तित रूप है. हृषीकेश का अर्थ है हृषीक (इंद्रिय) को जीतकर रैभ्य मुनि ने ईश (इंद्रियों के अधिपति विष्णु) का प्राप्त किया. इसलिए (हृषीक+ईश अ+ई=गुण) हृषीकेश. हृषीकेश अत्यन्त प्राचीन तीर्थ स्थल है. भूमि एवं जल के अलौकिक प्रभाव, ऋषियों के तपस्या व देव प्रभाव के कारण ही तीर्थत्व का प्रतिपादन होता है. हृषीकेश में उक्त सभी तत्व सन्निहित हैं. नगर के मध्य भाग में स्थित श्री हृषीकेश नारायण (श्री भरत मंदिर) का इतिहास ही ऋषिकेश का इतिहास है.
कृते वाराहरुपेण त्रेतायां कृतवीर्यजम्।
द्वापरे वामनं देवं कलौ भरतमेव च।
-स्कंद पुराण 116/42
यहां रैभ्य ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनको दर्शन दिए और उनके आग्रह पर अपनी माया के दर्शन कराए. रैभ्य ऋषि को वरदान दिया कि आपने अपनी इंद्रियों (हृषीक) को वश में करके मेरी आराधना की है, इसलिए यह स्थान हृषीकेश कहलाएगा और मैं कलयुग में भरत नाम से यहां पर विराजूंगा. हृषीकेश के मायाकुंड में पवित्र स्नान के बाद जो प्राणी मेरे दर्शन करेगा, उसे माया से मुक्ति मिल जाएगी. ये ही हृषीकेश भगवान श्री भरत जी महाराज है.
विक्रमी संवत 846 (ई. सन 789) के लगभग आद्य शंकराचार्य ने बसंत पंचमी के दिन हृषीकेश नारायण श्री भरत भगवान की मूर्ति को मंदिर में पुनः प्रतिष्ठित करवाया था. तभी से हर वर्ष बसंत पंचमी के दिन भगवान शालिग्राम जी को हर्षोल्लास के साथ मायाकुंड में पवित्र स्नान के लिए ले जाया जाता है. इस मंदिर में अक्षय तृतीया के दिन 108 परिक्रमा करने वालों को श्री बद्रीनाथ भगवान के दर्शनों के समान ही पुण्य मिलता है.ुुुु
इस प्राचीन एवं पौराणिक मंदिर के संबंध जन-सामान्य में कई मान्यताएं एव अनुश्रतियां प्रचलित हैं-
- श्री भरत मंदिर में हृषीकेश नारायण की अकेली चतुर्भुजी प्रतिमा होने के पीछे यह कारण है कि मुनि रैभ्य ने इंद्रियों (हृषीक) को जीत कर विष्णु (ईश) को प्राप्त किया.
-अनुश्रति है कि पर्वतारोण के समय पांचों पांडव द्रोपदी सहित यहां आए, कुछ समय तक विश्राम करके हृषीकेश नारायण का पूजन कर उत्तराखंड की यात्रा पर चल पडे़, महाभारत के उल्लेख के अनुसार पांडवों के पथ-निर्देशक ऋषि लोमश ने यहीं पर पांडवों को निर्देश दिए कि वे केवल अपनी आवश्यकता की सामग्री ही साथ रखें.
-अशोक महान (लगभग 273-232 ई.पू.) के शासनकाल में बौद्ध धर्म का विस्तार पर्वतीय प्रांत तक हो गया था. स्वयं भगवान बुद्ध भी यहां पधारे थे. इस क्षेत्र के सभी मंदिरों बौद्ध मठों के रूप में परिवर्तित कर दिए गए. जिससे यह मंदिर भी अछूता नहीं रहा. मंदिर के समीप ही उत्खनन में प्राप्त पाषाण प्रतिमा बुद्ध की बताई जाती है. मंदिर के सम्मुख यह मूर्ति अब भी वट वृक्ष के नीचे देखी जा सकती है.
महापंडित राहुल सांकृत्यायन अपनी पुस्तक में लिखा है कि हृषीकेश कभी दस-पांच घरों का एक गामड़ था, किंतु अब तो यह अयोध्या के भी कान काटता है.

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