Harish Bhatt
शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009
तन्हाई
तन्हाई में बैठा सोच रहा
क्या करू,
कविता लिखूं
या किताब पढू
सोचा कविता लिखी जाए
कलम उठाई
कागज पर रखी
फिर तन्हाई
शब्द नहीं मिलते, लाइन नहीं बनती
अचानक काम याद आया
कलम उठाई, कागज फेंका
और उठ गया
सोचा
फिर बैठा तन्हाई में तो
लिख लूगा
शायद कविता ही.
1 टिप्पणी:
संगीता पुरी
27 फ़रवरी 2009 को 10:53 am बजे
बहुत अच्छे भाव...
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