मरकज़ से मरघट तक
मंजिल की तलाश में निकले थे घर से जो, जिंदगी के लिए ही लौट रहे हैं घर को वो. वक्त की मार देखिए गांव वालों पर भारी पड़ गई परदेसियों की लापरवाहियां. रिसर्च की खता, इंसानियत सन्न. कैसी चली हवा, पड़ा दुनिया को-रोना. ना दवा ना दारू, बस सब दुआ के भरोसे. जब इत्तेफाक पुनरावृत्ति में परिवर्तित होने लगे, तब डर और दहशत का वातावरण बनने देर ही कितनी लगी है. वुहान में उपजा, मरकज़ से फैला. हर ओर सिर्फ कोरोना ही कोरोना. मास्क, सेनेटाइजर, आइसोलेशन, जमाती और सोशल डिस्टेटिंग के बीच लॉकडाउन. शायद यही प्रकृति का बदला था इंसान से. जब अपनी परछाई से डर लगता हो, तब कौन अपना-कौन पराया. कोरोना को हराने के लिए उपाय भी ऐसा कि घर में कैद होना है. कोई फाइटिंग नहीं, सिर्फ इंतजार कोरोना की खुदकुशी का. मनमर्जी जिंदगी पर भारी पड़ती है, अब दिल कोप भवन में जाता है तो जाने दो. यूं भी कोरोना को हराने के लिए दिमाग ही काफी है. सलाम इंडियन पुलिस, मेडिकल स्टाफ, फोटो जर्नलिस्ट और सफाई कर्मी इनके जज्बे को यूं समझिए कि अंगारों पर नंगे पांव चलना, क्योंकि इंसानियत को कोरोना से बचाना है. कोरोना की दहशत में जहां हॉस्पिटल सुने पड़े है वहीं मरघट में सन्नाटा पसरा पड़ा है. अब इसको कोरोना की दहशत कहिए या प्रदूषण मुक्त प्रकृति की मेहरबानियां. क्या से क्या हो गया नजदीकियां बनाते-बनाते दूरियां बनाना जरूरी हो गया जिंदा रहने के लिए. जीत जाएंगे हम तुम अगर दूर हो. बस दुआ कीजिए कि कोरोना के साए में मरकज़ से निकले जमातियों की फौज से मरघट का सन्नाटा न टूट पाएं.
मंजिल की तलाश में निकले थे घर से जो, जिंदगी के लिए ही लौट रहे हैं घर को वो. वक्त की मार देखिए गांव वालों पर भारी पड़ गई परदेसियों की लापरवाहियां. रिसर्च की खता, इंसानियत सन्न. कैसी चली हवा, पड़ा दुनिया को-रोना. ना दवा ना दारू, बस सब दुआ के भरोसे. जब इत्तेफाक पुनरावृत्ति में परिवर्तित होने लगे, तब डर और दहशत का वातावरण बनने देर ही कितनी लगी है. वुहान में उपजा, मरकज़ से फैला. हर ओर सिर्फ कोरोना ही कोरोना. मास्क, सेनेटाइजर, आइसोलेशन, जमाती और सोशल डिस्टेटिंग के बीच लॉकडाउन. शायद यही प्रकृति का बदला था इंसान से. जब अपनी परछाई से डर लगता हो, तब कौन अपना-कौन पराया. कोरोना को हराने के लिए उपाय भी ऐसा कि घर में कैद होना है. कोई फाइटिंग नहीं, सिर्फ इंतजार कोरोना की खुदकुशी का. मनमर्जी जिंदगी पर भारी पड़ती है, अब दिल कोप भवन में जाता है तो जाने दो. यूं भी कोरोना को हराने के लिए दिमाग ही काफी है. सलाम इंडियन पुलिस, मेडिकल स्टाफ, फोटो जर्नलिस्ट और सफाई कर्मी इनके जज्बे को यूं समझिए कि अंगारों पर नंगे पांव चलना, क्योंकि इंसानियत को कोरोना से बचाना है. कोरोना की दहशत में जहां हॉस्पिटल सुने पड़े है वहीं मरघट में सन्नाटा पसरा पड़ा है. अब इसको कोरोना की दहशत कहिए या प्रदूषण मुक्त प्रकृति की मेहरबानियां. क्या से क्या हो गया नजदीकियां बनाते-बनाते दूरियां बनाना जरूरी हो गया जिंदा रहने के लिए. जीत जाएंगे हम तुम अगर दूर हो. बस दुआ कीजिए कि कोरोना के साए में मरकज़ से निकले जमातियों की फौज से मरघट का सन्नाटा न टूट पाएं.
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